संगठन में ही शक्ति है | Sangathan Main Hi Shakti Hai
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देकर कुछ पाने की इच्छा दान नहीं है १५
और न स्वयं ही विचलित हुए । आपके लिए सच्ची सत्ता आपके
म्रन्तरात्मा का श्रादेदा था। नै इसीको ईदवर या सत्य _कुहता हूं।
इस छोटी-सी घटना में हमारे सारे -स्वातष््यःसशरमुःका सार घ्रा
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देकर कुछ पाने की इच्छा दान नहीं है
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एक वार गांधीजी के पास एकसेठ प्राये । कुछ देर तक तो
वह् इधर-उधर की वाते करते रहै, फिर सहुसा शिकायत के स्वर
मे बोले, “वाप् देखिए, दुनिया कितनी बेईमान हं । मैने पचास
हजार रुपये लगाकर धर्मशाला वनवाई। अब धर्मशाला वन
जाने पर मुझे ही उसकी प्रवन्ध-समिति से अलग कर दिया गया
हं । जवतक वह् वनी नहीं थी, कोई भी न था। वन जाने पर
पचास अधिकार जतानेवाले आा गये हैं । '
सेठजी की बातें सुतकर गांधीजी जेसे कुछ सोचने लगे।
थोड़ी देर बाद बोले, “आपको यह निराशा इसलिए हो रही है
कि आपने 'दान' का सही अर्थ नहीं समझा है । किसी चीज को
देकर कुछ पाने की इच्छा दान नहीं है, वह तो व्यापार है।
न
आर जय झा न উপ লিলা? শু क आर এয
সা जयं प्रापने व्यापारकियाद् ते लामग्रौर हानि दोनों
फैलिप दवार श লা चा ए सा सप् कि सचता न्म छ? भी 22
के लिए নাহ रहना चाहिए। लाभ भी हो सकता हैँ, हानि भी ।
খা পাল सेठजी विकणे अकि वि = ০
অহ सुनकर सेठजी निरुत्तर हो गये ।
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