संगठन में ही शक्ति है | Sangathan Main Hi Shakti Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देकर कुछ पाने की इच्छा दान नहीं है १५ और न स्वयं ही विचलित हुए । आपके लिए सच्ची सत्ता आपके म्रन्तरात्मा का श्रादेदा था। नै इसीको ईदवर या सत्य _कुहता हूं। इस छोटी-सी घटना में हमारे सारे -स्वातष््यःसशरमुःका सार घ्रा जाता हैं ।” र ह ক ४ हे | ५ य = ५०-९५-०-.०-०-०-०-७-०-०-०-०-4-०७-२०-०-०-७-०-०-०-०-०-०-०२०-०७८०-०-४-७-०-०-०-०-०-०-६ च) क | ५ ~ ० < † २३८९ ০৩ देकर कुछ पाने की इच्छा दान नहीं है च्‌ 4 = र एक वार गांधीजी के पास एकसेठ प्राये । कुछ देर तक तो वह्‌ इधर-उधर की वाते करते रहै, फिर सहुसा शिकायत के स्वर मे बोले, “वाप्‌ देखिए, दुनिया कितनी बेईमान हं । मैने पचास हजार रुपये लगाकर धर्मशाला वनवाई। अब धर्मशाला वन जाने पर मुझे ही उसकी प्रवन्ध-समिति से अलग कर दिया गया हं । जवतक वह्‌ वनी नहीं थी, कोई भी न था। वन जाने पर पचास अधिकार जतानेवाले आा गये हैं । ' सेठजी की बातें सुतकर गांधीजी जेसे कुछ सोचने लगे। थोड़ी देर बाद बोले, “आपको यह निराशा इसलिए हो रही है कि आपने 'दान' का सही अर्थ नहीं समझा है । किसी चीज को देकर कुछ पाने की इच्छा दान नहीं है, वह तो व्यापार है। न आर जय झा न উপ লিলা? শু क आर এয সা जयं प्रापने व्यापारकियाद्‌ ते लामग्रौर हानि दोनों फैलिप दवार श লা चा ए सा सप्‌ कि सचता न्म छ? भी 22 के लिए নাহ रहना चाहिए। लाभ भी हो सकता हैँ, हानि भी । খা পাল सेठजी विकणे अकि वि = ০ অহ सुनकर सेठजी निरुत्तर हो गये ।




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