मेरा पेट भारत का पेट है | Mera Pet Bharat Ka Pet Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्या त्‌ सुझे अच्छी तरह देख सकती है ? सन्‌ १९३४। उडीसा-यात्रा । एक दिन गांधीजी श्रपने दल के सहित शाम को यात्रा कर रहे थे । सारे रास्ते मे उत्सुक ग्राम- वासी पक्ति बाधकर खड़े थे और उनके आने की राह देख रहे थे। एक स्थान पर तो बडी भारी भीड थी। लोग सारी सडक पर फेल गये थे। उन्हीके बीच एक बृदिया, जिसके सारे बाल सफेद हो गये थे और भ्राखो की ज्योति धुधली पड गई थी, इधर- उधर दोड़ रही थी और कह रही थी, “वे कहा है ? मै उन्हे अवश्य देखगी। वह इतनी उत्तेजित थी कि सम्भवत दर्शन से वचित रह जाती, परन्तु तभी गाधीजी ने उसे देख लिया। वह रुक गये और उसे पुकारा। उत्कण्ठा से भरी हुई वह बुढिया उनके पास आई श्रौर अपनी धुधली आखो को उनके ऊपर गड़ा दिया। गाधीजी हँस पडे और बोले, “क्यो ? ” फिर उसकी ठुड्डी पर हाथ लगाते हुए पूछा, “क्या तू मुझे अच्छी तरह देख सकती है ?” वुढिया के आनन्द की कोई सीसा नही थी । विह्नल होकर उसने अपने दोनो हाथ उनके गले से डाल दिये और उनकी छाती पर सिर रखकर आनन्द मे आत्मविस्मृत-सी हो गई । धीरे-धीरे गाधीजी ने अपने को छडाया और सपने से खोई




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