हमारा समाज | Hmara Samaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.08 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्श किसी देश में लोकतंत्र शासन-पद्धति को सफल बनाने के लिए पहले वहीं के अधिवासियों को लोकतंत्री बनाना आवइयंक होता है । लोकतंत्री समाज के लिए ही लोकतंत्र राज्य उपयुक्त द्ोता है । जाति-भेद लोकतंत्र का बिलकुल उलट हे । लोकतंत्र जन्म से सब को बराबर मानता है। पर जाति-भेद जन्म से दही किसी को ऊंचा और किसी को नीचा समझता दे । ऐसी दशा में लोक- तंत्र भोर जाति-भेद दोनों इकट्रे नहीं रह सकते । इसलिए भारत में सच्चा लोकराज प्रतिष्टित करनेके छिए शिक्षा द्वारा जनता के जाति-भेद संबंधीं श्रान्त विचारोंको बदलना आवश्यक है। यदि जनता को पेट भरने के लिए अन्न और तन ढँकने के लिए व्न देकर दी उपकत करने का यत्न किया जायगा तो इसका परिणाम कोई अच्छा नहीं होगा । इस से बह पालतू गाय के सदा हो जायगी । उसे जो भी शासक अच्छा खाने-पहनने को देगा वद्द उसी को दूध देने और उसी के अधीन होकर रहने लगेगी । उसमें अपना शासक आप होने का प्रजा से राजा होने का पुनीत भाव जागृत न होगा। वद्द सदा परमुखापेक्षी और पराज्ञजीवी दी घनी रहेगी । गुजूनीके महमूद या अद्मददशाह अब्दाली ने भारत पर इस कारण विजय नहीं पाइ थी कि हम उस समय भूखे-नंगें थे वरन् हम इसलिये हारे थे कि दम में एक दूसरी बहुत बड़ी चीजू का अभाव था और वदद चीजू थी बंघुता और समता से उत्पन्न दोनेवाली एकता । इसी एकता का अभाव इस समय भी हमारे दुःखों का मूल कारण बन रहा है ओर जातिंमेद को बनाए रखकर दम यद्द राष्ट्रीय एकता कदापि उत्पन्न नद्दीं कर सकते । जातिभेद से होनेवाली सामाजिक भाधिक ओर राजनीतिक हानियोंका अनुभव करके १० मार्गशीर्ष संवत् १९७९ विक्रमी भर्थात-नवम्बर सन् १९२२ को कुछ मित्रों के सहयोग से मेंने लाहौर में जातपै।त तोडक॒ मण्डल नाम की एक संस्था स्थापित की थी । तब से में मण्डल के मंत्री प्रधान भोर संस्था की मुख पत्रिका क्रान्ति के संपादक के रूप में देश में से जातिभेद को मिटाकर समता बंधुता भोर स्वतंत्रता का प्रचार करता रहा हूँ । मेरे जीवन का सर्वोत्तम भाग इसी कार्य में व्यतीत हुआ है। इस पुस्तक के लिखने में भी मेरा उद्देश्य भारत में एक ऐसी विचार-धारा प्रचलित करना दे जो सब देश-वासियों को एकता भौर बंघुता के सुदद़ सूत्र में संगठ्ति करके एक शक्तिशाली एवं दुर्भेद् रा्र का रूप दे सके । दिन्दुओं के धर्म में कोई दोष नहीं । इन का उच्च तत्वज्ञान इन का उत्कृष्ट न्रह्मवाद भोर इनकी शान्तिदायिनी संस्कृति भाज भी संसार के बड़े से बडे दार्शनिक को आकर्षित करती है । दोष है हमारी समाज-रचना में । इमारी
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