श्रीमद्भगवद्गीता | Srimadbhagvadgita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
216 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ॐ श्रीहरिः %
৬০ शा যা
+ तत्सद्व्रह्मण सदः
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हिन्दाभाषानुवाद्साहेत
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( उपोद्घात )
३० नारायणः परोऽव्यक्तादण्डमव्यक्तसंमवम् ।
अण्डस्यान्तस्त्विमे लोकाः सप्तद्वीपा च॒ मेदिनी ||
व्यक्तसे अर्थात् मायाते श्रीनारायण--आदिपुरुष सर्वभधा अतीत ( अस्पृष्ट ) हैं, सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड अव्यक्त--प्रकृतिसे उत्पन्न हुआ है, ये मूः, भुवः आदि सब्र छोक और सात द्वीपोंवाली पृथिवी `
ब्रह्माण्डके अन्तगंत हैं । हे
भगवान् घुष इद जगत् तस्थ च इस जगंतको रचकर इसे पाटन करनेकी
धिति चिकीषुः सरीच्यादीच् अग्रे सृष्टा | इच्छावाठे उस्न भगवानने पहले मरीचि आदि |
प्रजापतीन् प्रवात्तलुक्षण धर्म ग्राहयामास प्रजापति्योको रचकर उनको वेदोक्त प्रंबृत्तिरूप ১
वेदोक्तम । वर्म ( कमंयोग ) ग्रहण करवाया ।
ततः अन्यान् च सनकसनन्दनादीन् फिर उनसे अरग सनक, सनन्दनादि ऋष्रियोको
उत्पाद्य निवृत्तिलक्षणं धर्म ज्ञानवैराग्यलक्षणं | उत्पन्न करके उनको ज्ञान और बैराग्य जिसके लक्षण हैं
ग्राहयामास | | ऐसा निशद्ृत्तिरूप धम्म ( ज्ञानयोग ) ग्रहण करवाया ।
द्विविधो हि वेदोक्तो धमः, प्रवृत्तिलक्षणो | वेदोक्त धर्म दो प्रकारका है--एक प्रवृत्तिरूप,
निधर्तिटक्षणः च । ` दूसरा निवृत्तिरूप । |
। जगतः ` धितिकारणं प्राणिना साक्षात् | जो जगत्की सितिका कारण ता प्राणिर्यो-
अभ्युदयनिःश्रेयसहेतुः यः स धर्मो ब्राह्मणाचैः की उन्नतिका और मोक्षका साक्षात् हेठदहैषए्व
ক বি ২ ৩
_ | कल्याणकामी ब्राह्मणादि वर्णाश्रम-अबढम्बियोंद्ारा .
बाण = आज्रासमिः च ` अरयाजयाभः | जिसका अनुष्ठान किया जाता है उसका नाम `
अनुष्ठीयमानः) : रे | धर्म है। .
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