हरिवंश - पुराण | Harivansh Puran

Harivansh Puran by पं. भगवानदास शास्त्री - Pt. Bhagwandas Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्श् हरिवंश-पुराण श्रध्याय २ रूप में प्राप्त किया । उनसे वीर सुत का जन्म हुआ । उनसे प्रियत्रत और उत्तानपाद की उत्पत्ति हुई । प्रिय- त्रत ने वद्िष्ठजी की कन्या में सम्राट कुक्षि विराट और प्र नामक चार पुत्र उत्पल किये । उत्तानपांद ने कदम की कन्या सुनीता से ध्रच कोतिमान झादि को उत्पन्न किया । घ्रव ने घोर तप के द्वारा सप्तपि यों के आगे दिव्य अचल पद ग्राप्त किया । ध्रुव के रिपु रिपुज्य आदि पाँच पुत्र हुए । इन्हीं के वंश में झागे अंग ने सत्य की कन्या सुनीथा से बेन को उत्पन्न किया । वेन ने देवता यज्ञ तथा घस और ऋषियों का विरोध किया । ऋषियों प्रजा के कल्याण के लिए वेन को गद्दी से उतारकर उसके शरीर को मथा । उससे पऐ्रथु उत्पन्न हुए । पथ सबसे पहले अभिषिक्त राजा हुए और उन्होंने ऐ्रथ्वी को दुदकर तथा सुव्यवस्था करके श्रजा को परम सुखी किया । प्रथु के अंतर्धान और पालित नामक दो पुत्र हुए। अन्तर्धान के हृविधान उनके आ्राचीनवर्हि उनके दस प्रचेता हुए । दर्सों प्रचेता जल में तप करने में मग्न हो गये। व्यवस्था करनेवाले राजा के न रहने से प्रजा नष्ट हो गई श्र प्थ्वी दक्षों से भर गई । प्रचेतागण जब तप के अनन्तर बाहर निकले तो उन्हें इक्ष-ददी-च्चक्ष देख पड़े । उन्होंने कोपकर बइक्षों को भस्म करना प्रारम्भ




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