हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास | Hindi Sahitya Ka Subodh Itihas

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Hindi Sahitya Ka Subodh Itihas by गुलाबराय - Gulabrai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ादि-काल , श्ड् इतिहास प्रमाणित संवर्तों में झन्त! है तयापि यह अन्तर सब स्थानों में एकसा है। यदद ६० वर्ष का अतर है । ६० वर्षें के अन्तर देने का “यह कारण बतलाया जात! हैं कि नन्दवंशीय राजा शूद्व थे ौर राजपूत-गोरव केः रचक चारण गण ठस काल को राजएूनों के इतिदास में नद्दी रखना चादते थे । इसलिए वे उस समय को दो कर काल-गणाना प्रथक रीति से करते हद ऋऔर इसी कारण वह श्नन्द,ब्र्थात्‌ नन्द रदित,संवत्‌ माना गया है । झनन्द का श्र्थ मी ६० लगाया हैं ( श्र ०, नन्दन ६ ) ओोगाजों ने सिद्ध किया है कि श्नन्द संवत को कट्पना करने पर भी राध्षो की तिथियाँ ठीक नहीं बेडती । शहाबुद्दीन गोरी को सात बार दराये जाने के सम्बन्ध में मिश्रबन्धुओं का कहना है कि प्मव हैं कि मुण्लमान इतिदाश्रकारों ने ये घटनाएँ श्पपनी द्दीनत। दिंपाने के लिए न लिखों हों । श्राचायं शुकजी का मत रायबढादुर गौरोशंकर दीराचन्द से मिलता दै । उनका विचार दै कि चन्द नाम का कोई कवि पृथ्वीराज के पुत्र या उनके किसी वंशज के यहाँ रद्दा द्ोगा। उसने ब्यपने ्ाश्रयदाता के पूर्वजों की अशंधा में कुछ छन्द लिखे दोंगे। उसमें और छन्द मिल कंर एक प्रन्य तैयार दो गया ओर चन्द को पथ्वीराज का समकालीन बतला कर वद्द ग्रम्थ उधके नाम से प्रयात कर दिया गया । राख्वद्वादुर बा० श्यामछुन्दरदासजी चन्द को परथ्वीराज , का समकालीन दोना मानते हैं और यद मी मानते हैं कि उसने कुछ छन्द रचे होंगे और वे बहुत से,प्रक्तित छन्दों से मिलकर वर्तमान ग्रन्थ के रूप में था गये । झाब यदद कद्दना कठिन दै कि कितना अथ प्रच्ित है और कितना मूल | मिश्रवन्धु भी परब्याजी के मत का समथन करते हुए कदते हैं कि यद्द बात बिचार में नददीं झाती कि कोई कचि एक कल्पित कवि के नाम से ढाई हर्जार पृष्ठ का एक ग्रन्थ रच कर खड़ा कर दे, क्योंकि झपने परिश्रम का यश दूश्नरे को दे देना सइज कार्य नदी है । राष्टी के पत्त में यदद मी कहा जाता है. लि उसमें ब्धिकांश वर्णन वर्तत मान काल के रूप में श्राये दैं । जिससे श्रकूठ द्ोता दे कि चस्रका लिखने वाला समकालीन कवि है । 'ोमाजी ने मापा के सम्बन्ध में




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