निरन्तर | Nirantar
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
54 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হে निरन्तर
है ? उड़ना भी एक श्रवसर पर ही सफल होता है मधुप 1
भंवरा दक्षिण की श्रोर बढ़ गया श्रौरं सरोज स्नानागार
की ओर चल दी ।
हेम पत्र लिख चका था ।
प्रमेश्वरीलाल ने कह दिया--“अब इस पत्र को तुम्हीं
लेते जाना हेम । रास्ते में कोई पत्र-पेटी मिलेगी ही, उसी में
छोड देना ।
हेम निःशवास लेता हुआ सोच रहा था--सरोज दूसरे
की हो गयी है । अब उसे सुभसे मिलने-जुलने की क्या
आवश्यकता है ? हो सकता है, वह अरब मेरी छाया से भी दूर
रहना चाहती हो। माना कि मेंने नहीं पूछा था--.'कब
आयी सरोज ? अच्छी तो हो ? पर उसको तो कुछ कहना
चाहिये था। इतना ही पूछा होता--श्राजकल क्या करते रहते
हो दहा ? पर उसने मेरी भ्रोर देखा तक नहीं ।
उसे फिर ध्यान आ गया--वह दूसरे की हो गयी है ।'
पर इस बात के ध्यान मात्र से हेम का समाधान न हुआ ।
उसे प्रतीत होता था, यह मुझे चुनौती दी गई है । मुभसे
कहा गया है कि जीविकाहीन व्यक्ति होकर तुम कुछ नहीं हो।
. अन्त में वह उठकर खड़ा हो गया। एक बार तो यह
. भी उसके मन में श्राया कि यह चिट्ठी वह इन्हीं परमेश्वरी
चाचा के सामने फाड़कर फेंक दे और स्पष्ट कह दे कि जिस
सरोज को मैने श्रपनी भ्रात्मा की निखिल निष्ठा के साथ प्यार
हे ..._ किया है, वह अ्रगर मुझसे मिल नहीं सकती, मेरे घर नहीं श्रा
सक्ती, तो न महेश के साथ मेरा कोई सम्बन्ध रह जाताः
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