आँगन के गुलाब | Aangan Ke Gulab

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Aangan Ke Gulab by चन्द्रदत्त इंदु - Chandradatt Indu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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षट ऑगन के गुलाब उसने कहा - जैसे भी हो रहूँगा। किसी पेड़ पर चढ़कर ही रात बिता दूँगा। लेकिन अब वापस जाने या आपके साथ चलने की शक्ति मुझमें नहीं है। उसकी बात सुनकर जैसे पुजारी को दया आ गई। बोले- पास में ही एक कोठरी है जो जंगलात के आदमियों की है। कभी-कभी उनका कोई अफसर यहाँ आकर ठहर जाता है। उसकी चाबी मेरे पास है। तुम रात भर वहीं रहो। हाँ ध्यान रखना खिड़की और दरवाज़े सावधानी से बंद कर लेना। अंधेरे में यहाँ शेर तेंदुआ और ऐसे ही हिंसक जानवर अक्सर आ जाते हैं | पुजारी उसे चाबी देकर अपने गाँव चला गया। उसने कोठरी खोलकर देखा । वहाँ माचिस और लैंप तो था ही खाट-बिस्तर भी था। वह थका तो था ही दरवाजे बंद कर बिस्तर पर लेट गया। लेटते ही नींद ने आ घेरा | आधी रात के करीब अचानक आँखें खुलीं। बड़े ज़ोर की भूख लग रही थी। भूख के मारे पेट में दर्द भी होने लगा था। क्या किया जाए? उसने लैंप जलाया। इधर-उधर देखा । वहाँ एक घडे में पानी रखा था। गिलास भी था । भूख मिटाने के लिए वह गटागट दो गिलास पानी पी गया। मगर पानी से भूख थोड़े ही .मिटने वाली थी उसने धीरे से खिड़की खोलकर बाहर झाँका तो कुछ दूरी पर आग जलती हुई नजर आई। आग के आसपास दो-चार आकृतियों भी थीं | वे आपस में बातचीत कर रही थीं मगर क्या यह स्पष्ट सुनाई नहीं दे रहा था। यह देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गए। बचपन में सुनी भूत- प्रेतों की अनेक कहानियाँ जैसे उसके आगे सजीव हो उर्ठीं। आधी रात भयानक जंगल सांय-सांय करती हुई हवा बस भूतों की बात धीरे-धीरे उसके मन में जड़ पकड़ने लगी। फिर लगने




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