इन भावों का फल क्या होगा | In Bhanvo Ka Fal Kaya Hoga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन भावों का फरर बया होगा ।, ১০-০৯-০০১৯ धर्मेश के मन में धीरे-धीरे धर्म का स्वरूप और उसके साधनों का औचित्य जानने की जिज्ञासा बढ़ती ही चली गई। एतदर्थ वह स्वतत्र स्वाध्याय तो करने ही लगा, दूसरों के अनुभवों का लाभ लेने के प्रयास में भी रहता। पर वह पढ़ी- सुनी बातो को आँख मींच कर माननेवालों में नहीं था। उन पर घन ही मन खूब ऊहापोह करता। आवश्यकतानुसार नियमपूर्वक तत्त्वचर्चा, शंका- समाधानं भी करता/कराता। पस्तु अभी तक उसे कहीं से भी कुछ भी सतोषजनक समाधान नही मिला। फिर भी उसने अपनी धार्मिक दिनचर्या पूर्ववत्‌ चालू रखी और सही समाधान पाने के प्रयल भी चालू रखे। « ए = ১৬০৭ ^ রি পক ) || ; 14 1. # रै (ओ । । | ঃ (€ ॥ 1 1 ) 1




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