जवाहर किराणावलीं नारी जीवन | Javahar Kiranavali Nari Jeevan

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Javahar Kiranavali Nari Jeevan by कमला जैन - Kamla Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गा! ः শা = है ५४ = ( ~)? र्थ भारतीय नारी ] 1৩৮ आदशे भी पूणं रूप से सुला दिया गया । धीरे धीरे परिस्थितियाँ छ्रौरभी चिगद्ठी गह। घी की स्वतन्त्र विचारशक्ति तथा व्यक्तित्व का लोभ-सा हो गया | नये आदशे জিলা জিহ ইহ ঈ वन्ता लिए गए तथा प्रत्येक क्षेत्र मे पुरुष ने अपन अधिकारों को असीम बना लिया | मनु- स्मृति में लिखा हैः-- अख्तंत्रा: ल्लिय. कार्या पुरुष; स्वैदिवानिशम्‌ । विषयेपु च सज्डन्त्य: सस्थाप्या: आत्मनों वशे ॥ पिता रकत्ति कौमारे भर्ता रक्तति योवने। सन्ति स्यविरे पुना न च्रो स्वातन्भ्यमहैति ॥ खी की परिस्थिति का सजीव चित्र इस में स्पष्ट है। स्त्रियों को परतन्त्र रखना चादहिए। पुरुषों को चाहिए कि बह पत्नियों को अपने वश से रकक्‍्खे | कौसारावस्था से पिता कन्या की रक्षा करता है, गोव्रनावस्था में पति रक्षा करता है तथा बृद्धावस्था म॑ पुन्न । स्त्रियो को स्वतन्त्रता कभी नही सिलनी चाहिए । स्त्रियों को सबंदा अविश्वास की दृष्टि से देखा जाने लगा । उन्हे पुरुषों के सदश अधिकार पाने के सबंधा अयोग्य समझा जाने लगा । आठ प्रकार के विवाहों मे से आसुर राक्षस तथा पेंशाच भी माने गये । यदि पुरुष किसी स्त्री का जबद॑स्ती अपहरण भी करत तो भी बह्द उसके साथ बिवाह करने का अधिकारी हैं। बोद्ध सघ भे पहिले तो स्वियों को मिह्ुणी होने की मनाई थी पर जत्र उन्हें आज्ञा दे दी गई तब भिक्लुओं से अधिक कडे नियसो का निर्माण किया गया।




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