टॉड कृत 'राजस्थान' | Tand Krit 'Rajasthan'

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Tand Krit 'Rajasthan' by डॉ. रघुवीर सिंह - Dr Raghuveer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सं कल राजस्थान 1 [ श इढना देते हुए मौ ये इतिहासकार कट सत्य कइने स््र साइस रतते थे जो कमी कमी उनके म्वामियों के लिए. ब्यस्त अदतिकर दा था । अनैठिक्दा की बाते देखकर जब कषि अत्यम्त दुखी होये थे और सास्तिझ कोव से उसे जि दो बाते थे हो वे परिणाम से निडर होइर, उनको बुल्दी और कोनित करने वाले राजा की निस्दा करने से मी नहीं चअूकते थे । कवियों के इस प्रक्यर के कई निशा करन उनछी उपहासर्मक रचनाओं में विधमान हैं, उनमें झनेक ऐसे इटी सगे ब्य उपदारू छिया गया हे चे मदि कतियो को रूद्ध त करते सो थे ऋपयश के 'घम्बे से भेज दाद । जणपू शजु की कार की झपेछा कदि की विधमद बासी की मार से झनिक डरता हे । रायपूत रान्यों में तर्वसाघारण से राजडीस बातों ब्य कोई रइस्य नहीं रखा ठाता सामान्यत' उनमें उन्य सर. दार से कषेकर द्ारपाल तढ़ प्रत्येक ब्यक्ति रुचि लेता है । ऐसी स्पिति में घटनाओं को लिपिबद्ध करने वाले इतिहासकार को मही सुविधा मिलती है । लगातार ऋस्तम्पस्व अवर्पा में रइने पाले पेरा मेबाड़ में कई बार ऐसा समय मी आगा सब कि बाई बातो को गुप्ठ रखना अस्पन्त आवश्यक दो गया उस समय मेवाड़ के रया ने यद दिचार प्रकत किया “माह चौमुली राज'' दे एक्टिंग इसके स्वामी हैं मैं उनका प्रतिनिधि हूँ; मेरा विर्यास उन्हीं में हे और मैं श्रपने भालपच्ची (प्रजा) से कुछ मी नहीं द्धिपाठा ।” सामान्य शब्रु्धों के गिरद्ध संगठन करते समय झावश्यक राजकीय चारों को सर्षसा या. रण से गुप्त न गलत कौ प्रबूति का परिणाम व दोता है कि उनका सामना करने में कई जुटियों ( कमियां ) झा जाती हैं” किम्तु या मी रही दे दि इस माबना के कारया शासन को पैत्रिक स्वरूप मिश जादा दे ब्औौर उससे सर्वछाभारंश में स्पामी मक्ति और देश-मक्ति की माउनायें उत्पस्न दो जादी हैं बचपि से मापनायें पूर्ण और गारी यहीं दो पाती ! इन कबितामय इतिशसी कौ पूछ भहुद मंडी स्यूनता मर हे कि उनका कएन योद्धाओं द्वारा रणदत्र में मररशित किये गये धीरदापूर्श क्यों तक ही सीमित यदा दे अपवा यो कई कि उनकी ऐेलनी का छत 'रिंग-रयामूमि' 'अर्पात्‌ प्रेम और पुद के बिष्यी तक हो प्याप्त दे । पुद्ध पसन्द करने बाली बादि के मनोर॑बन के शिए; लिखने वाले लेख सर्ब साधारण से सम्बन्धित बातों भर शाम्तिमव बीगन से सम्नन्दित कला वोशल की ब्ों को मइसव नहीं दटे मेम और घुद्ध दी उनके गिफ्य होते हैं । मारतगर्प का अस्तिम बड़ा सार कमि अन्द (सपने प्रम्ब (६) दी मूमिअ में लिखता है कि, में साप्नाम्यीं के शासन सम्बर्वी निममीँ की म्पास्या करूंगपर” आदि और कबि अस्ट ने अपने सेभऋस्प वो पूरा किया दे ससने अपने म्स्थ में विमिस्न पटनाचकी के अरन के छाप साथ मिन फ्लिन रपानों पर उपरोक्त थातों की व्फस्पा बर दी है । इठके अतिरिक्त माट कवि राम्म-म्यवस्था से सम्बाँबत प्रत्बेद गुप्त ब्रर्यचादी का शान रखने पर मी राजन दरबार के पढ़मखों और अम्य प्रपार की हल्दी झठी में इदने गहरे उठर बाते हैं कि राजकार्यों के विपय में यथार्थ सम्मति प्र करने के योल्य नहीं समझे थाते । इन तमाम धषगुर्णती के शोते हुए सी देशी मा” गदियों के धन तप्यों पटनाओं भार्टि जिसारों आचार भ्पबद्ार के तर ऋादि के सम्बस्थ में बहुत दो मूस्थबान सामपी प्रस्युत करते हैं. डिनमें से अधिकांश अनपेचित सिख दौ गा है और वे सब से कम सम्देद पक ऐतिहासिक प्रमास माने जा सते हैं । कि बन्द लिखित परप्जीराज के बौरता- पूर्ण इथिदार में का मौगोलिक एवं पैतिशास्कि तथ्यी कप विवरण अपने सम्राट की लड़ाइवी का बरान करते समय निया गया दे और जिलं उसने स्वयं झपनी दी से देखा था | कि सर सम्राठ इप्यौराज को ऋपमान से बचाने के लिए. द चार पु बाले का राज्य भचोत चनके इप्टरेव एकलिम का रास्य पिन गरिमा सनटनिि-टनाला-अन--बम्पण (5) कबि चाद बरदाइ ! (० प्रप्यौराज गासो




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