वृहत् पूजा - संग्रह | Vrahat Pooja-sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सं? रे०३७ बेसाख शुक्छा ४ ता० १८ छप्रेड १६८० को आपका समाधिपुर्वेक स्वग गमन जयपुर में हो गया । जिसकी सूचना टेडीफोन एवं तार द्वारा प्राप्त दोते ही पूरे जैन समाज में शोक छा गया । इजारों की संख्या में दूसरे स्थानों से मक्तजन छापके झन्तिम सस्कार के लिये जयपुर पहुँचे । अन्तिम संस्कार के समय मे भाँपू छिए १५-२० जार व्यक्ति इक्ट्ठ हुए । पूरे भारत के विभिन्न शहरों व गांवों में श्रद्धांजलि समाए हुई । छनेकों स्थानों में आपशी फी पुण्य सदृति में मददोत्सब थे पूजाएँ हुई । प्रचर्तिनीजी श्री घिक्नणश्रीजी जैन समाज के लिये थे प्रकाश थे प्रेरणा थे। उनकी लेन शासन सेवा को कभी सुलाया नददीं जा सकता 1




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