राजस्थानी कहावतन - भाग 1 | Rajasthani Kahavatan Bhag-1

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Rajasthani Kahavatan Bhag-1 by भँवरलाल नाहटा - Bhanvarlal Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३) गौर कहावर्नों के सम्रद और व्यारया भें हम छग जाये, तो कई हज़ार कहावतों का एक विराट अमिधान निकल सफ्ता दे। जिससे समग्र उत्तर भारत के जीवन का एक विद्यघर परिचय मिलेगा | अध्यापक श्री नरोत्तमदाघ स्वामी जौर पण्डित्‌ श्री मुरलोधर व्यास्र विगरद्‌ ने अपनी प्रान्तिक योरी, अपनी मातृभाषा पर प्रेम रते हुए जो नानिष्ठु्र संग्रद- पुस्तक दो सह में प्रकाशित की रै, उसके ग्रथन के জিত रेचको को कर अन्वेषक-परपरा नहीं मिली, राजस्थानी फे लिये इस विपय में इन्हे ही। [10766 ঘা पथधिकुृत्‌ घनना पड़ा। पर हनके सामने कई यच्छे समद विद्यमान होने के कारण इन्होंने जिस सुन्दर टग से अपनो पुस्तक बनाई, उससे भाषा, साहित्य और छीकसस्फृति पर प्रेम रखने वाले सन७2 हंगे, उनकी पुस्तक से छाम उठाते हुए लेखर्कों को धन्यवाद्‌ देंगे । प्रत्येक कहावत अपने शुद्ध राजस्थानी रूप भें दो गई है, उसके नीचे हिन्दी मे जाक्षरिक अमुवाद रकक्‍खा है जिस से भाषागत विशेषनाएँ परिस्फुट होतीं है, फिर अन्त में एक सक्षिप्त हिन्दी टीका भी दी गई है, जिससे फह्ावत का अभिप्राय अथवा इसकी खास यात, इतिहास भादि, खुलासा कर दिया गया है । हमे आशा है कि यह पुस्तक अपने नये-नये सस्करणों के साध জীব मी बढ़ती जायगी, और राजस्थानी तथा भाधुनिक भारतीय भाषाओं के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान अधिकार कर रहेगी । किसी भापा में वारत्तताप के लिये तथा लेखन के लिये प्रवाद्‌ एक सार्थक अलकार है । मानों की भापा की नमकीनी या छावण्य इसमें प्रयुक्त प्रवाद और कहावतें मे छिपा हुआ है । किसी भाषा की प्रवादावली उस भाषा की जनता की सैकड़ों वर्षों की अभिज्ञता का सम्पुट है । यद भभिक्नना जीवन के सच व्यापारों के आधार पर होती है। श्रवादों के गठन में आबाल-इद्ध-वनिता, राजा से गुछाम, प्रण्ठित से अनपढ़, साधु से ठय, सब प्रकार के मानवों का सहयोग होता है । जब से मनुष्य सामाजिक बन कर अपनी परिस्थिति के सम्बन्ध में सचेत हुआ था, तब से उसकी चिन्ता और धारणा, उसके निन्दुन जौर अनुमोदन, उसकी भाशा और भाफाक्षा, उसके समाछोचन और व्यग, प्रवादों के रूप में ही अकठित हुए । दो-धार शब्दें में संक्षिम सन्नाकार उक्ति में ही अ्वादों की शक्ति निबद्ध रहती है--“ध्वत्पा च




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