तर्कशास्त्र - भाग 1 | Tark Shastra Bhag-1

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Tark Shastra Bhag-1  by विमलदास कोंदिया - Vimaldas Kondiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ १-- विषयप्रवेश तक करना यह बतलाता है कि मनुष्य श्रन्य प्राणियों से अधिक ज्ञान रखता है। सभी प्राणियों मे कुछ न कुछ ज्ञान अवश्य होता है। शान होने मात्र से तक॑ करना नहीं होता है | तक मे हम सर्वदा दृश्य से श्रदृश्य या प्रदत्त से अ्रप्रदत की ओर सोचते हैं। सोचना और तक करना एक दही वात ह] यह मनुष्य मैं ध्वामाविक है। मनुष्य हमेशा से देश से परे, काल से परे, भाव से परे या इन्द्रियों से परे की वस्तुओं के विषय मैं तक द्वारा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करता रहा है। इस तकं करते की या सोचने की प्रक्रिया ने ही तफशाञ् को लन्म दिया है। तकशाल् का श्राधार, विचार है। जो वस्तु विचारकोटि में श्रा जाती है वह तर्क का विषय बन जाती है । विचार का पर्यौलोचन मनोविशान, * अतिभोतिक शात्र* या श्रन्य विशान भी करते दै, किन्तु तकशा का विषय, विचार उन सबसे मिन्न है। तकेशाल्र केवल सामान्य विचार्रो को लेकर चलता है और सामान्य विचार्रों को श्राधार मान कर विशेष विचारों का निष्कर्ष निकालता है, या विशेष विचारों के श्राधार पर सामान्य विचारों फे समूहात्मक वाक्य बनाकर सामान्य सव्यो को ]:5550000109£5 2 1155901755705, 3, 150510




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