निश्चयधर्म का मनन | Nishchay Dharm Ka Manan

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Nishchay Dharm Ka Manan by ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निश्चयधपेका मनन । [ও ए-शार्पत्तिक गुफा जम यह जात्मा अपनी शक्तिको सम्हाल अपनी चेतन्यमय मूमिक्तमें म्थिर होजाता है तब श्रव चोर दृस्से ही चका करते हैं और वहां जा नहीं सकते | संवरक्ा झडा गाड़े हुए यह चिद्‌ मूप अपनी अनन्त गुणमय राज्यधानीका राज्य करता हुभा अपने स्वरूपमें ऐसा उन्मत्त होरहा है कि इसके चित्तसे पुनक्र ओर पृज्य- भाव, ध्याता जर ध्येयभाव तथा ज्ञाता ओर जेयमाव निकरु गया है । यह अपने अनन्त चतुष्टय स्वरूप ओट परम पारणामिक सावक्ता म्बत सवामी है, अतीं्रिय आनन्द इसके हरएक प्रदेशका स्वत्व है, यह शुद्ध चतन्य परिणतिक्ता ही कर्त्ता ओर भोक्ता है, शुद्योपयो- गक्की मृमिकामें ही इसकी अवंध दशा है, ऐसी गाढ़ प्रतीति सो ही सम्बग्दगन है | आत्मा, पुद्रल, धर्म, अधर्म, आकार, काल इनं पांच अनात्म ब्रव्योंसे विलक्षण अपने चित्‌ लक्षणसे दीप्तमान अस्ि- मय पढाधे है ऐसा सशय विपर्यय अनध्यवस्ताय रहित ज्ञान सो सम्यग्ज्ञान है, कपाय कालिमाकी मेटकर और बीतराग भाव जमाकर अपनी ज्ञान चेतनामें स्थिरता पाना सो सम्यक्चारितर है । इन तीन स्वरूप आत्मा जत्र वर्तन करता है तव आप ही निश्चय मोक्षमार्गी होजाता है | उत्त समय यह जात्मा आप ही साधक होकर अपनेः ही साध्यके लिये आप ही साधन करता दे और सचा साधु होता हुआ तीन गुप्तिकी गुफामें बैठकर एकागताका आश्रय ले आत्मिक ध्यानमें एकतान होकर अनुभव रसका पान करता हुआ परमानंदका: लाभ करता है |




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