जैन इतिहास भाग 3 | Jain Itihas Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.19 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीमती रमादेवी जैन शास्त्री - Shrimati Ramadevi Jain Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संघर्ष में विभिन्न ध्येय श्रौर वाद जन्मते हैं पनपते है । सामा- जिक स्थिति श्रगर बहुत ही जड़ या जटिल हों चुकी हो तो मसानव-मन अ्रशान्त होने पर क्रान्ति के लिये तयार हो जाता है । क्रान्ति से भ्रनेक श्रान्दोंलनों की संघर्षों की परम्परा प्रारम्भ हो जाती है । उस समय यही हुमा भी । बौद्धिक जागरण से धार्मिक क्रान्ति से कुछ जनता को उज्ञवल भविष्य निर्माण का छुभावसर मिला तो कुछ जनता ने उसे श्रपनी स्वा्थ-साधना का साधक भी बनाया । समाज की स्वतन्त्र स्थिति पर धारमिक परतन्त्रता का भारी भार लाद कर चेतन्य समाज को मुर्दा बना दिया । धामिक वातावरगा से सम्बन्धित होने के कारण सामाजिक स्थिति जटिल हो चुकी थी धामिक युग की छाप समाज पर पड़े बिना कंसे रह सकती थी ? वेदिक एव श्रमगा संस्कृति के बीच धार्मिक मान्यताओं की खाई ने श्र प्रभावपूर्ण संधष के श्रपने दो किनारों से संस्कृति की लोल लहरियों को समय-समय पर एक दूसरे से टकराने वाला बना दिया । धार्मिक स्थिति अ्रत्यन्त गई साथ ही सामाजिक स्थिति को भी उलभा ले गई स्त्रियों श्र छूद्रों को धर्माराधन के अधिकारों से भी बड्चित कर दिया गया जातिभेद वरांभेद जटिल हो चले भ्रन्याय के भ्रन्धकार में पड़ो समाज की श्रात्मा न्याय के प्रकाश के लिये चिल्ला उठी-- विषमता का नादा हो समता का साम्राज्य हो । परन्तु फिर दबा दिये गये
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