गोपुली गफूरन | Gopuli Gafooran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gopuli Gafooran by शैलेश भटियानी - Shailesh Bhatiyani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शैलेश भटियानी - Shailesh Bhatiyani

Add Infomation AboutShailesh Bhatiyani

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जंगल चरने को न छोड़ना । आजकल में व्याती लग .रही है। कहीं ऊंचे- नीचे फिसल पड़ेगी । गोपुली घोड़ापड़ाव पहुंची, तब तक धूप पेड़ों की कमर तक आ गई थी लेकिन घोड़ों पर लादी कस चुकने के बावजूद, विक्रम अभी दुकान पर ही बैठा था । गोपुली ने घास का गट्ठर दीवार के सहारे उतारते हुए, मदन को कहा कि पूले गिन ले और विक्रम की तरफ मुड़ते हुए ऐसे घूरकर देखा, जैसे वह उसकी प्रतीक्षा में बंठा हो । वक्रम ने भपकर, अपनी आंखें, नीची कर लीं। उसे अचानक वह दिन याद आ गया, जब गोपुली परतिमा प्रधानी के पास गई थी और भीमसिंह को समझा देने को कह गई थी कि 'सासू, वहू-बेटी सवकी वरावर होती है, कह देना भीमसिंग से। उनकी नंदिनी चौदह-पंद्रह की होती होगी। व्याहने को हो आई बेटी के वाप का दूसरों पर बुरी नजर रखना ठीक नहीं ।' परतिमा प्रघानी के पूछने पर, गोपुली ने साफ-साफ कह दिया था कि भीमसिह ने उसका सिर्फ हाथ ही नहीं पकड़ लिया था, मुंह भी जूठा कर दिया था । परतिमा प्रधानी खिसियाकर रह गई थीं। एक क्षण को जैसे चेहरे पर का पानी उत्तर गया हो। धीमे से वोली थीं, “तू भूठ न कहती होगी “तेरा मुझे विश्वास है।' बस, इतने से ही गोपुली शांत हो गई थी और अपने स्वभाव के अनु- सार तुरन्त परिहास करती वोली थी, “ये ठाकुर लोग, वदन से छुए को पानी छिड़केंगे, मगर थूक का परहेज नहीं इन्हें ।” “हाय, तेरे मुंह में आग लगे ! महा वदमाश है तू ।” कहते हुए परतिमा प्रधानी भी हंस पड़ी थीं। फिर सयानियों की तरह बोली थीं, गोपा, मरद की जात भीरिकीदहै। महु परवेंटी मक्खी को उडाकर संतोप कर लेना चाहिए। आइंदा वह खृद ही लिहाज वरतेगा 1 “अरे, सासू, आखिर-आखिर आपका दूध पिया है इन लोगों ने ।” कहते हुए गोपुली ने पास में खड़े विक्रम को ओर देखा था, और तब उसे गोपुली / १३




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now