जीवदया प्रकरण-काव्यत्रयी | Jeevdaya Prakaran-Kavyatrayi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवदया प्रकरण ই लोग सुख चाहते हैं; सुख धर्म करने से होता है; धर्म जीवदया में है और जीव-दया क्षमा से होती है । मानव सदा सुख कामना करते सदा संसार ঈ। पर सौख्य प्राप्ति न न हो सके बिन धर्म के आचार में ॥ सद्‌ धरम श्रेष्ठ कहा गया है मात्र प्राणी की दया। क्षमापुबक जो करे जग जीव पर करुणा লতা |) [ ই ] पर वचणा निमित्त' जंपदइ अलियाई ज़णवओ नूणं। जो जीव-द्या जुत्तो अलिणएण न सो पर दुहइ॥६॥ दूसरों को ठगने के लिए. लोग जान-बूक कर मिथ्या भाषण करते हैं, पर जो जीवदया युक्त हें वे मूठ ( विश्वासघात ) के द्वारा दूसरों को इखी नही करते | पर वंचना के हेतु जो जन कपट का आश्रय लिये। जो बोरते भिथ्या वचन दै धात मन निश्चय कयि] कारुण्य प्रतिमा किन्तु जो प्राणीद्या से युक्त है। पर कण्टदाद्‌. अरीक मापा बोलते न अयुक्त हैँ ॥६॥ [ও] तण कटं च हरतो दूद्‌ हिययाई निग्विणो चोसे । जो दरद्‌ परस्स धणं सो तस्स चविलुपए जीवो ।७॥ चरेण काष्ट को हरने षाला मी दुमति हृदय वाला अतिघृणास्पद चोर ६। जौ परायेधनको हरण करता है वह उसका प्राण ही नाश करता है|




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