जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला | Jain Siddhant Pravesh Ratnmala

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Jain Siddhant Pravesh Ratnmala by विनीत - Vinit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) उ० (१) छह द्र॒व्यों का एक क्षेत्रीवगाही संबंध है । (२) शरोर और আত জী का एक क्षेत्रावगाही संबंध है । प्र० ३०. स्त्री पुत्र, धन, दुकान, मकान, सोना, चाँदी का इन तीनों संबंधों में से कौन सा संबंध है ? उ० स्त्री पुत्र भ्रादि का तो कितो भी प्रकार का संबंव नहीं है । जैसे वृक्ष पर पक्षी श्राकर बैठ जाते हैं कोई एक घन्टे में कोई दो घन्टे में उड़ जाता है; उसी प्रकार स्त्री पुत्र मकान आदि का संबंध है अर्थात्‌ किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है । प्र० ३१. जब स्त्री पुत्र श्रादि का किसो भो प्रकार का संबंध नही है तो यह मूर्ख जोव क्‍यों पागल हो रहा है ? उ० अपने आपका पता न होने से, वर पदार्था' में इसके साथ किसी भी प्रकारका संबंवन होने से, यह भ्रपनी मूखेता से भूठा संबंध मानकर पागल बन रहा है । प्र० ३२. यह वागलपन कंसे मिटे ? उ० विश्व में छह जाति के द्रव्य हैं।एक एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का कर्ता भोक्ता श्रादि किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है प्रत्येक द्रव्य ऋमबद्ध, ऋमनियमित कायम रहता हुआ स्वयं बदलता रहता है। मैं उनमें कुछ भी हेर फेर नहीं कर सकता हूं ऐसा जानकर अपने जत्रिकाली भगवान का झाश्नय ले तो पागभलपन मिठे । प्र० ३३. जो भ्रपनी भूखंता है उसका भ्रात्मा के साय कैसा संबंध है ? उॐ० शुभाशुभ विकारी भावों के साथ आत्मा का झनित्य तादात्व्य संबंध है । प्र० ३४. जो जीव दयादान पृजा शअरुक्रत महाद्रत झादि जो भनित्य-




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