भारत : अल - बिरूनी | Bharat Al Biruni

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एडवर्ड सच्चाऊ - Edward Sachau

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नूर नबी अब्बासी - Noor Nabi Abbasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संपादक की भूमिका / हां तो मान्यता थी ही उसका कुछ अन्य मामलों मे भी संबंध था जैसे बहुबिवाहू और प्रयुति के वाद की अवधि | अल-विरूनी ने लिखा है कि कुछ हिन्दुमों का यह मत था कि पत्नियों की संख्या जाति पर मिमेर होती है और तदवुसार ब्राह्मण चार पत्नियां रख सकता है क्षत्रिय तीन वैब्य दो और शुद्र एक प० 246 | दूसरी वात के वारे में उसने लिखा है कि प्रसव की अवधि ब्राह्मण के लिए 8 दिन क्षत्रिय के लिए 12 दिन वैद्य के लिए 15 दित और शुद्र स्त्री के लिए 30 दिन थी पू० 247-48 । यहां यह बताना अनुचित न होगा कि गरीब लोगों में जहां काम करने वाले हर सहायक का महत्व होता है प्रसवकाल के बढ़ जाने से कुछ मार्धिक कडिनाइयां अवदय पेदा आती होंगी 1 शिक्षा क्षेत्रीय भाषाओं गौर लिपियों पर भी वढ़ी मुल्यवान जानकारी इसमें मिलती है । इसी से हमें यह मालूम होता हैं कि उस युग में बच्चे पाठशाला में लिखने के लिए स्लेठ भोर खड़िया का इस्तेमाल करते थे पृ० 92 । हमें उस पद्धति का भी विवरण मिलता है जिससे विभिन्न प्रकार के वृक्षों की छाल भर पत्तियों से लेखन-सामग्री तैयार की जाती थी । साथ ही उस प्रणाली का भी पता चलता है जिसके द्वारा खजूर के पत्ते पर हाथ से लिखी पांडूलिपियों की जिल्द वांधकर उन्हें परिरक्षित किया जाता था पृ० 85 18 रेशमी कपड़ों के टुकड़े भी लिखने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे हालांकि ऐसा केवल विक्षेप मामलों में हो होता था पृ० 199 । ह्विन्दुओों की लिपि या वर्ण माला में पचास गक्षर थे जो एक क्रमिक पद्धति के अनुसार विकसित हुई थी । इसमें अक्षरों की वड़ी संख्या के कई कारण थे जिनमें से एक यह था. कि उनकी भाषा में कई ध्वनियां थीं जो दूसरी भाषाओों में नहीं थीं । इसके वाद हिग्दुओों की लिपि का बड़ा सजीव चित्रण मिलता है-- यूनानियों की भांति हिन्दू वाई से दाहिनी ओर लिखते हैं। वे रेखा सींचकर नहीं लिखते जिसके ऊपर भक्षरों के शी हों भर उनके निचले सिरे नीचे की ओर रहते हैं जैसा कि अरवी लिपि में होता है। इसके विपरीत उनकी अधो रेखा ऊपर होती है--हरेक भरक्षर के ऊपर एक सीधी-- बोर इस रेखा में लटका कर अक्षर -उसके नीचे लिखा जाता है । रेखा के ऊपर जी भी चिट्न लगाया जाता है बहू केवल व्याकरणिक संकेत होता है जो इस भक्षर का उच्चारण दर्शाता है जिसके ऊपर वह लगा हुआ है पृ ०.86 1. उसने प० 92 एक श्रोर बड़ी दिलचस्प प्रथा का उल्लेख किया है जो देश के पूर्वी भागों में प्रचलित थी कि फोर बनने मे ज्यादा प्यार किया जाता था क्योंकि ज्येप्ठ पुत्र के जन्म का आधार प्रमुख रूप से कामुकता थी जबकि कमिष्ठ पुत्न प्रीढ़ चितन मोर शांत प्रगमत का परिणाम सानो जाता था। 2. पुस्तकों और पांडुलिपियों के मनेक निजी संग्रहों में चजूर के पन्नों पर लिखी पांदुलिपियां आज भी उसी प्रकार से प रिर हित रखो जाती हैं।




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