मधु - रस | Madhu-ras
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
938 KB
कुल पष्ठ :
45
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१४ ] मघु-रस
यह बात बढ़ी और सभी देश में छाई।
इतनी कि चक्रवर्तिके कानोमें भी आई॥
सुन, दौड़े हुए आये भक्ति-भावसे भरकर |
फिर बोले मधुर-बैन ये चरणोमे मुका सर ॥
थोगीश ! उसे छोड़िये जो इन्द है भीतर ।
हो जाय प्रकट जिससे शीघ्र आत्म-दिवाकर !!
हो घन्य, पुण्यमूर्ति ! कि तुम हो तपेश्वरी ।
प्रभु! कर सका है कौन तुम्हारी बराबरी ?
मुमसे अनेकों चक्री हुए, होते रहेगे।
यह सच है कि सब अपनी इसे भूमि कहेगे ॥
पर, आप स्चाईपे अगर ध्यानको देंगे।
तो चक्रधरकी मूमि कमी कह न सकेंगे ॥
में क्या हूँ ?-तुच्छ ! भूमि कहाँ ? यह तो विचारों ।
काँटा निकाल दिलस अकल्याणको मारो ॥*
चक्रीने नभी भालको धरतीसे लगाया।
पद्-रजको उठा भक्तिसे मस्तकपै चद्ाया ॥
गोया ये तपस्याका दी सामथ्यं दिखाया ।-
पुजना जो चाहता था वही पूजने आया ॥
फिर क्या था, मनका दन्द सभी दूर होगया ।
अपनी ही दिव्य-ज्योतिस भरपूर दोगया ।!
कैवल्य मिला, देवता मिल पूजने श्राए।
नर-नारियोने .खूब ही आनन्द मनाए ॥
चक्री भी श्रन्तरगमे फले न समाए।
भाईकी आत्म जयपै अश्र आँखमें आए ॥
है वन्दनीय, जिसने ,गुलामी समाप्त की।
मिलनी जो चाहिए, वही आज़ादी प्राप्त की ॥
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