देवाधिदेव अरिहंत-भक्ति | Devadhidev Arihant-Bhakti

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Devadhidev Arihant-Bhakti by मुनिश्री भद्रगुप्तविजयजी - Munishree Bhadrguptvijayji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ ## हो अह म ॥ देवापिदेव आरिहंत-भक्ति सिद्धमर्यमणिदियमणयज्नमच्चुय॑ बीर । पणमामि मयर तिहुयण-मत्थय-चूडामणि सिरसा ॥ सिद्ध अरूपी अगोचर, अननद्य-पवित्र, स्थिर स्पभाय बाला आर समगर पीन भुवन के मस्तक फ चूडामणि सैसेश्ची महाबीर स्वामी को में भस्तर दारा नमस्कार ररता हूँ । देवाधिदेव अरिहत-भक्ति का মনত श्री अहत्‌ परमात्मा वा पूनन शास्जकारों ले श्री राज्ञप्रश्नीय वे গীজীনান্ীনালিগন सूत्र आदि में-- “पचे पच्या दियाए पाए खेमाए निस्वेयमाए यणु गाभियत्ताएं मरिस्माह ` अर्थात्‌ पहले और पीछे द्वित का कारण, सुख का कंप्ण, कल्याण वां फारण, मोक्ष का फारण और মঙ্গ লন আঁ আন্তুগাদী (षाथ धाने धाज्ञा) वतलाया है । +~ ++




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