निजामृतपान | Nijamritpaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रन्थ प्रणेता झा० विद्यासागर जौ : आ० विद्यासागर जी स्व-साधना के साथ निरन्तर ज्ञानाभ्यास में प्रवृत्त रहते है । प्रत्येक क्षण कितना बहुमूल्य है और उसका कैसे उपयोग करना चाहिए यह आचायंश्री के सान्निध्य से सीखना चाहिए । आपने अनेकं ग्रन्थो का प्रणयन कर भगवती श्रुतदेवता की महती आराषना की है । आपके द्वारा रचित-प्रकाशित ग्रन्थ इस प्रकार है : १--योंगसार का हिन्दी पद्मानुवाद २--इष्टोपदेश का हिन्दी पद्मानुवाद ३-- समाधितन्तर का पद्यानुवाद ४--एकीमाव स्तोत्र (मन्दाक्रान्ता छन्द में) पद्यमय अनुवाद ४५---कल्याण मन्दिर स्तोत्र (वसन्ततिलक छन्द मं) पद्यानुवाद ६--निजानुभव शतकम्‌ ७--श्रमण दातकम्‌ : सस्कृत तथा हिन्दी म पद्यमय कृति । ८-- भावना शतकम्‌ : संस्कृत तथा हिन्दी में प्यमय कति (आद्यन्त यमकालंकार) इस कृति की संस्कृत टीका परं (डँं०) ঘল্লালাল আ साहित्यचार्य ने की है। ६--जै नगीता (समण सुत्तं का वसन्ततिलका छन्द मे) हिन्दी पद्यानुबाद १०--निरंजन शतकम्‌ (सस्कृत-दुतविलम्वित तथा हिन्दी बसन्ततिलक छन्द मे) पद्यमय रचना ११-- कन्दतरन्द का कुन्दन : ममयसार का वसन्ततिलका छन्द मं हिन्दी पद्यानुवाद १२-- -मुक्तकं शतकम्‌ १६---नीर्थं तवम्‌ १४ निजामृतषान ` अमृतचन्द्र सूरि के नाटक समयमार कलञञ' का हिन्दी पद्मा- नुवाद । (प्रस्तुत प्रकाशन) । आचार्येश्री की लेखनी अबाधगति से निरन्तर चलती रहती है । वे सिद्धहस्त ग्रन्य रचयिता और तत्त्वोपदेशक है । हमारी मनोभावना दै किवे चिरायु हो तथा उनकी लेखनी ओर वाणी से युग-युगो तकं मानवता का उद्धार होवे । शिष्य परम्परा : इस समय आचार्यश्री की शिष्य परम्परा में निम्नलिखित साधु है : श्री ६०५ ऐलक दर्णमनसागर जी श्री १०५ क्षु० स्वख्पानन्द जी श्री १०५ क्षु° नियमसागर जी पटह




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