निजामृतपान | Nijamritpaan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
161
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रन्थ प्रणेता झा० विद्यासागर जौ :
आ० विद्यासागर जी स्व-साधना के साथ निरन्तर ज्ञानाभ्यास में प्रवृत्त रहते है ।
प्रत्येक क्षण कितना बहुमूल्य है और उसका कैसे उपयोग करना चाहिए यह आचायंश्री के
सान्निध्य से सीखना चाहिए ।
आपने अनेकं ग्रन्थो का प्रणयन कर भगवती श्रुतदेवता की महती आराषना की है ।
आपके द्वारा रचित-प्रकाशित ग्रन्थ इस प्रकार है :
१--योंगसार का हिन्दी पद्मानुवाद
२--इष्टोपदेश का हिन्दी पद्मानुवाद
३-- समाधितन्तर का पद्यानुवाद
४--एकीमाव स्तोत्र (मन्दाक्रान्ता छन्द में) पद्यमय अनुवाद
४५---कल्याण मन्दिर स्तोत्र (वसन्ततिलक छन्द मं) पद्यानुवाद
६--निजानुभव शतकम्
७--श्रमण दातकम् : सस्कृत तथा हिन्दी म पद्यमय कृति ।
८-- भावना शतकम् : संस्कृत तथा हिन्दी में प्यमय कति (आद्यन्त यमकालंकार)
इस कृति की संस्कृत टीका परं (डँं०) ঘল্লালাল আ
साहित्यचार्य ने की है।
६--जै नगीता (समण सुत्तं का वसन्ततिलका छन्द मे) हिन्दी पद्यानुबाद
१०--निरंजन शतकम् (सस्कृत-दुतविलम्वित तथा हिन्दी बसन्ततिलक छन्द मे)
पद्यमय रचना
११-- कन्दतरन्द का कुन्दन : ममयसार का वसन्ततिलका छन्द मं हिन्दी पद्यानुवाद
१२-- -मुक्तकं शतकम्
१६---नीर्थं तवम्
१४ निजामृतषान ` अमृतचन्द्र सूरि के नाटक समयमार कलञञ' का हिन्दी पद्मा-
नुवाद । (प्रस्तुत प्रकाशन) ।
आचार्येश्री की लेखनी अबाधगति से निरन्तर चलती रहती है । वे सिद्धहस्त ग्रन्य
रचयिता और तत्त्वोपदेशक है । हमारी मनोभावना दै किवे चिरायु हो तथा उनकी लेखनी
ओर वाणी से युग-युगो तकं मानवता का उद्धार होवे ।
शिष्य परम्परा :
इस समय आचार्यश्री की शिष्य परम्परा में निम्नलिखित साधु है :
श्री ६०५ ऐलक दर्णमनसागर जी
श्री १०५ क्षु० स्वख्पानन्द जी
श्री १०५ क्षु° नियमसागर जी
पटह
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