जैन-सिद्धान्त-भास्कर | Jain-Siddhant-Bhaskar
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दिरण 1 ] भारत में जैन और बौद्ध धर्मों का तुलगाध्मक पतन ११
समानता के इन कारणो से हिन्दु मोर जेन के पोच पतनी देषा লন সংহজিল
हुए लितनो बोद्धों मोर दिदुमाके मष्य र! यदिजेन नास्तिक আম ইঃ রা सारय, योग
प्रर पुं मोमासा कम नासि नक्ते ह। न्याय दशन का হী [সহজ সহজ वर फते
জিরা प्रमाणित कसना था । शकर के मतानुसार पूव मामासा से ह्वर प्रमाणित नहीं
হীরা) মত্ত ने नास्तिक की “नास्तिको बेदनिन्द्क ” परिभाषा करके हिन्दू धर्म से इतर
धमो पर नास्तिकता का सेदरा बाधा ।
महाडर स्यामो के पदिके वैदरिरौ हिला दस रूप म प्रचलित थी ऊफ्रि श्रायज्ञाति फा एक
बहुत बहा भ्रहू इसका प्रवण्द विरोधी हो गया था। कुछ भी सदेद নর আহি হজ ক
ने महादीर स्वामों की पुकार सुनो ओर उनके धार्मिक सिद्धात प्रहण किये। पर सूतन
सिद्धांत प्रहण करने पर भी उनके और हिन्दु के व्यवहारिक जीवन फे सम्बध मं
पिष ध्रम्तर न पडा जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आधुनिक सामाजिक सम्बाधा मे भी पाया
जाता है। भाज भी जैन तथा धैष्णर घर्मोयलम्दी हिंदू श्नपनी श्रपनी जातिया के भनवुर
पियाह सस्कार फरते है। येबात हिन्दुओं और बोद्धों के आवर इस रूप म फसी भी
ইন্ধন ম লনা মাহ? ध
जिस योग श्रौर तपस्या कौ महिमा हिदृधमे म षवनी गाई गहै नोर जिसक कार्ण
बहे षे प्यूषि मदर्पिया ने उद्यद प्राप्त किया, জী হাম বা হাদী লিলা হক
भरपान ने की। प्ोद्धधम के इन पिरोधी मूछ सिद्धा'ता ने हिन्दू पढठित समाज के बीच
विशेष्र पुरोदित प्राह्मणा फे बीच द्वेप की प्रबल प्मग्मि भडका दी प्मोर थे दिन रातत येन
फैन प्रकोरेण बौद्धा के विनाश फरने के प्रयव में छगे रदे ।
दूसरी श्रेणी के भाम्यन्तरिक कारणा म सब से प्रथम हमारा ध्यान गृइस्थ জনা হী
भावार सम्पधो नियमों की भोए जाता है। ये दिदुआ के दैनिफ श्राद्रएण समे-धी
दिपमों से कठिन है। सूब्पास््त के जाद मोनन निधे) फट् मुखा फा सेयन निषध पच
उदुम्बर शुथा मधु का भत्तण निपध, घर्षा ऋतु में सानिया का जाता निषेध इत्यादि नियमा
सर शडड़ा हुआ शीवन मनुष्य माल को उतना छुरम प्रतोत नहीं होता, मितना इन यधनों
भ घन जयन प्रदोद होता है। यदि ज्नाफी सख्यां परायर कमी होती गह ति
भाधप्य की कोई बात नहों ।
दूसरा काएण अहिंसा का सिद्धात उपस्थित करता है। हम यदद ता रही कद सकत
हि इस* कारण साधारण ज्ञनता म इस धर्म क प्रति अमक्ति रहो, पर इतना
है, है चाय रिस््वार के छाउप मारतोय राना जिर्दे खफ़्यतों होने पयोर श्रभ्यमेभ यश
User Reviews
No Reviews | Add Yours...