शरत साहित्य - श्रीकांत तृतीय पर्व | Sharat-sahitya : Shrikant Tritiya Parv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ततीय प्य ११
भीतर-ही-भीतर एक लम्बी साँस लेकर मे मौन हो रहा | ऐसी सोनेकी-सी
जगह छोड़कर क्यों उस मद्भूमिक भ्रीच नितरान्धव नीच आदमियोक देराम
राजलक्ष्मी मुझ लिये जा रही है, सो न तो इसस कहा जा सकता है ओर न
समझाया ही जा सकता है ।
आखिर मेने कहा, “ शायद मेरी बीमारीकी वजहसे ही जाना पड रहा है,
रतन । यहो गहने आराम होनेकी कम आशा है, सभी डाक्टर यही डर
दिखा रहे हैं |
रतनने कहा, ^“ लक्रिन बीमारी क्या यहां ओर किंसीका होती ही नही
बाबूजी ? आराम हानेके लिए क्या उन सवका उस्र गगामटीमे दी जाना
पडना है?
मन-ही-मन कहां, मात्यूम नहीं, उन सबका किस माटीमे जाना पड़ता है )
हा। सकता है कि उनकी बीमारी सीधी हो, हो सकता है कि उन्हें साधारण
मिट्टीमे ही आराम पड जाता हो | मगर, हम लागाकी व्याधि सीधी भी
नहीं है आर साधारण भी नहीं, इसके लिए शायद उसी गगामाटीकी ही सख्त
जरूरत ই |;
रतन कहन छगा, “ माजीके खेका हिसाब-किताब भी तो हमारी किसीकी
समझमे नहीं आता । वहाँ न तो घर्द्वार ही है, न और कुछ । एक गुमाइता
है, उसके पास दा हजार रुपये भेज गये है एक মিশ্লীক্ষা मकान बनानेके लिए |
देखिए ता सही बाबूर्जी, य सब केस ऊँटपर्टोंग काम है ! नोकर हूँ, सो हम
ल्येग जैस काई आदमी ही नहीं हैं !
उसके क्षाभ और नाराजगीकी देखते हुए मेने कहा, “तुम वहाँ न जाओ
तो क्या है रतन । जबरदस्ती तो तुम्हे काई कही ले नहीं जा सकता * ”
मरी बातसे रतनका काई सान्त्वनना नहीं मिली। बोला, “माजी के जा
सकती हैं । क्या जान क्या जादू-मत्र जानती हैं व, अगर कहे कि तुम लागोका
जमराजके धर जाना होगा, तो इतने आदमियोमे हममेंस किसीकी हिम्मत नहीं
किं कह द, “ना । ` यह कहकर वह मुँह भारी करक चल्श गया |
ब्रात तो रतन गुस्सेस ही कह गया था, पर वह मुञ्च माना अकस्मात् एक
नये तथ्यका सवाद् दे गया । सिर्फ मेरी ही नहीं सभीकी यह एक ही दशा है |
उस जादू-मत्रकी बात ही सोचने लगा | मत्र-तत्रपर सचमुच ही मरा विश्वास है
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