लापता | Laapataa

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Laapataa  by प्रभाकर माचवे - Prabhakar Machwe

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्था में हैं, यह भी बताया पर देबी ने नौकरी भी ले ली पर वह ईसाई नही बना । देबी सोचता रहा --वाम, स्थान, जाति-पांति, धमे, देश, भाषा यह सब मनुष्य के साथ कितने और कहां तक जुडे रहते हैं ? उसने नामांतर किया ! उसने स्थानांतर किया । परन्तु जाति-पांति, धर्म के संस्कार उसके साथ कितनी गहराई से जुड़े हैं, जैसे उसकी त्वचा का वर्ण; जसे उसके बालों का घुघराला होना; जैमे उसकी भआाखों का नीलापन; जैसे उसकी कई आदतें--चलने की, बोलने की” ** ' उससे कोई मैट्रिक का सर्टी फिक्ट मांगता तो वह बताता वह बांग्ला देश से भागकर आया हुआ हिन्दू रेप्यूजी है । केरल में बंगाली कम थे । उसका यह मुखौटा उस पर वरावर घना रहा । कुछ महीनों तक देवी मे वहा चर्चे में नौकरी की । कुछ पैसे बचाये, भौर एक दिन उसने सोचा कि यहा रहना ठीक नही । इसका कारण हुआ । खाड़ी के देशों से वहां केरल के समुद्र के किनारे पर कई लोग “स्मगलिंग” का व्यवसाय करते थे । सोना और हीरे-जवाह- रात और पता नहीं क्या-क्या लाते थे। उनके चवकर में वह आं गया। और उनके दल का एक सदस्य सन गया । इस नाते उसे बेक में काम करना पड़ा । वहां से उसका तबादला गोआ हो गया । ईसाइयों से उसकी बढती हुई मंत्री और मेल-जोल ने उसे बहुत फायदा पहुंचाया । वह दिन के समय देवी मेन बेंक का कर्मचारी था । और रात के समय वह स्मगलरों का दिया हुआ नाम मिस्टर 'के' था । एक ही व्यर्कित में कितने व्यक्ति छिपे रहते हैं? अरविंद मलहोषा को उसके माता-पिता और बंचपन के मित्र और दिल्‍ली के लोग भूले नहीं होंगे । पर वह सबको मुला चुका है । देवी सेन को केरल के समुद्र किनारे के उस छोटे-से गांव के पादरी, पादरी की लडकी एडिथ, बोर चर्चे के पियानों सिखाने वाले, और डामिटरी के लोग और बेक के मैनेजर और उस दिन प्रिकनिक पर गये थे, तब मिले रंगीन तबीयत मछुआरे--सब भुल लापता : 15




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