चांपाडांगा की बहू | Chanpadanga Ki Bahu
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)को दल में न छो। उस समय सबने कहा, दस रुपये चन्दा देगा। चेहरा
अच्छा है, गाने का गला अच्छा है । अब हुआ न १
विजया खिलखिला कर हँसी और बोछी, आइं बोचा इस बार शिव
नहीं बना, इसलिये क्रीधित है ।
--खबरदार कहता हूँ बदमाश छोकरे । एक थप्पड़ में तुम्हारा सुह
टेढ़ा कर दूगा।
“--खुप चुप, कगड़ो मत । चलो, - चले राघ्ते में बोचा को शिव
बना कर चलेंगे। कौन जानता था कि वह ऐसा करेगा १ यह बात कही--
आधुनिक कपड़े-लछत्ते पहने हुए मेट्रिक फेल किसान-पुत्र घोंतन घोष ने ।
--कोन जानता है ! क्यों, महताब का सिर बचपन से ही खराब
है, इसे कौन नहीं जानता ए
जो लड़का विजया बना था, देखने में कुत्सित, खूब पतला, रंग काला
है। उसने फिर हँस कर कह्टा--बोचा के शिव बनने पर में दुर्गा बदूँगा ।
रमना होगा विजया । सुह मेँ कपड़ा देकर वह हसने रगा ।
अकस्मात जोर से क्यौ--च शब्द कर मंडल-बाड़ी के बाहर का द्र-
वाजा खुरा भौर गला साफ कर सिताब बाहर निकला ।
जनता सन्न हो गयी । एक-दूसरे का मुंह देखने रगे । दर्पति ঘাঁতন
ने भोंहे टेढ़ी कर कहा, चलो-चछो । इतना कह कर वह सबसे आगे तेजी
से चलने लगा ।
उसके पीछे-पीछे सब लोग ।
सिताब ने पुकारा घोंतन ! घोंतन !
दल के एक आदमी ने कहा, घोंतन दादा, बढ़े मण्डल पुकारते हैं ।
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