चांपाडांगा की बहू | Chanpadanga Ki Bahu

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Chanpadanga Ki Bahu by ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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को दल में न छो। उस समय सबने कहा, दस रुपये चन्दा देगा। चेहरा अच्छा है, गाने का गला अच्छा है । अब हुआ न १ विजया खिलखिला कर हँसी और बोछी, आइं बोचा इस बार शिव नहीं बना, इसलिये क्रीधित है । --खबरदार कहता हूँ बदमाश छोकरे । एक थप्पड़ में तुम्हारा सुह टेढ़ा कर दूगा। “--खुप चुप, कगड़ो मत । चलो, - चले राघ्ते में बोचा को शिव बना कर चलेंगे। कौन जानता था कि वह ऐसा करेगा १ यह बात कही-- आधुनिक कपड़े-लछत्ते पहने हुए मेट्रिक फेल किसान-पुत्र घोंतन घोष ने । --कोन जानता है ! क्‍यों, महताब का सिर बचपन से ही खराब है, इसे कौन नहीं जानता ए जो लड़का विजया बना था, देखने में कुत्सित, खूब पतला, रंग काला है। उसने फिर हँस कर कह्टा--बोचा के शिव बनने पर में दुर्गा बदूँगा । रमना होगा विजया । सुह मेँ कपड़ा देकर वह हसने रगा । अकस्मात जोर से क्यौ--च शब्द कर मंडल-बाड़ी के बाहर का द्र- वाजा खुरा भौर गला साफ कर सिताब बाहर निकला । जनता सन्न हो गयी । एक-दूसरे का मुंह देखने रगे । दर्पति ঘাঁতন ने भोंहे टेढ़ी कर कहा, चलो-चछो । इतना कह कर वह सबसे आगे तेजी से चलने लगा । उसके पीछे-पीछे सब लोग । सिताब ने पुकारा घोंतन ! घोंतन ! दल के एक आदमी ने कहा, घोंतन दादा, बढ़े मण्डल पुकारते हैं । ( १२ )




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