समीक्षा के मान और हिंदी समीक्षा की विशिष्ट प्रवत्तियां - भाग 2 | Smiksha Ke Man Aur Hindi Smiksha Ki Vishisht Pravttiyan - Part 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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মিস समीक्षा के मान और हिन्दी समीक्षा की विशिष्ट अब सियाँ “८०५८ काव्य का उद्देश्य--८०९. काव्य और कल्पनता--5६१०, काव्य और भाषा--८१ १ काव्य और अलंकार---४१२, रस--५१२. महत्व--%१३, गुलावराय--5८१४, कांब्य-- प१४, काव्य और कला--८१४, काव्य और कंस्पना--८१४. रस--४१४. सीतारास सतुर्वेदी->प८ १६, लक्ष्मीतारायण सुधांशु--८१६, हजारी प्रसाद द्विवेदी--5१७, विश्वनाथ प्रसाव मिश्रन--८१७, संभावताएं-८२० | छायावादी संमीक्ष) की प्रवृत्ति--5१०० स्वरूप-८२०, जयशंकर श्रसाद-८२१. काव्य और कंला-४२१, रस--८२२, सूर्यकांत जिफपाठी 'निराला-८२२. काश्य और कला-कर४. काव्य और छंद-८२५, सुमेत्रानस्दन पंत-५२६, काब्य--5२६, भाषा- ८२७,-छाोयावाद-5२७, महादेवी वर्मा--८२८, काव्य--39२८. छायावाद--८२९, शांतिश्रिव द्विवेदी-- ८३०. गंगराप्रसाद पॉडेय--८१२, महत्व और संभावनाएँ---5३२ । प्रगतिवादी समीक्षा की प्रवृत्ति--८३२, स्वरूप--8३२, प्रारंभ--८१३, राहुल झांकृत्यामब--5 ३ हे, प्रशेतिवाद की एकांग्रिता--८३४, प्रकाशचंद्र ग्रप्त--8३४, ভাঁচ रामबिलास झर्मा-प्र३६, शिवदान्सिह चौहान--5३९, प्रयोग की कप्मीदी--८४०, प्रगति और अचार--८४०, मन्धनाथ गुप्त--५४१, अयतिवाद की अनिवाय॑ंता--८४२, वैचक्तिक स्वातंत्य--८५४३, अतीत का ज्ञान--८४३, प्रगतिवादी दृष्टि-८४४, सर दागेम राधव “पढे ४, रामेश्वर दार्मा--६४६, महत्व और संभावनाएँ--८४४७, व्यक्तिवादी समीक्षा की प्रकृत्ति--८४४८, स्वरहूप-फ४८, प्रारंभ-८४९, सच्चिदानंद हीरानंद वात्त्यायन “अक्षेय--८४९, अनुभूति की ध्यापकता--५५०, साहित्य में प्रयीगात्यमकता--5१०, नीति नत्व--६५७, प्रयोग की कसौटी--८५२, गिरिजाकुमार माथुर--८५२, डॉ घमंबीर भारती-८५४, लक्ष्मीकांत वर्मा-८५५, महत्व तथा संम्भावनाएं--८५६ । मनोविद्लेषणत्मक समीक्षा की प्रवृत्ति--प५७, स्वरूप--४५७, आरंभ--४६५८, जैनेस्द्र कुमार--८५०, वैयक्तिकता का आग्रह--०५९, सर्वोदिय--६१५९, पंचशील---४६०, व्यक्ति का उन्नयन--८६०, रखयात्मक जीवत वृष्टि--5६ १, इलाचंद्र जोशी--४६ ६, युग भावता और आडम्बर की अक्ृति--४६२, छायावाद की उपलब्द्धि--५६३, साहित्य और बैयक्तिक कुंदा--८६४, मनोविज्ञान की ऐकांतिकता--६६४, मनोविशष्लेषणवादन--८६४, महत्व तथा संभावानाएँ->८६६६ 1




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