समीक्षा के मान और हिंदी समीक्षा की विशिष्ट प्रवत्तियां - भाग 2 | Smiksha Ke Man Aur Hindi Smiksha Ki Vishisht Pravttiyan - Part 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
475
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रतापनारायण टंडन - Pratapnarayan Tandan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)মিস समीक्षा के मान और हिन्दी समीक्षा की विशिष्ट अब सियाँ
“८०५८ काव्य का उद्देश्य--८०९. काव्य और कल्पनता--5६१०, काव्य और भाषा--८१ १
काव्य और अलंकार---४१२, रस--५१२. महत्व--%१३, गुलावराय--5८१४, कांब्य--
प१४, काव्य और कला--८१४, काव्य और कंस्पना--८१४. रस--४१४. सीतारास
सतुर्वेदी->प८ १६, लक्ष्मीतारायण सुधांशु--८१६, हजारी प्रसाद द्विवेदी--5१७, विश्वनाथ
प्रसाव मिश्रन--८१७, संभावताएं-८२० |
छायावादी संमीक्ष) की प्रवृत्ति--5१०० स्वरूप-८२०, जयशंकर श्रसाद-८२१.
काव्य और कंला-४२१, रस--८२२, सूर्यकांत जिफपाठी 'निराला-८२२. काश्य और
कला-कर४. काव्य और छंद-८२५, सुमेत्रानस्दन पंत-५२६, काब्य--5२६, भाषा-
८२७,-छाोयावाद-5२७, महादेवी वर्मा--८२८, काव्य--39२८. छायावाद--८२९,
शांतिश्रिव द्विवेदी-- ८३०. गंगराप्रसाद पॉडेय--८१२, महत्व और संभावनाएँ---5३२ ।
प्रगतिवादी समीक्षा की प्रवृत्ति--८३२, स्वरूप--8३२, प्रारंभ--८१३, राहुल
झांकृत्यामब--5 ३ हे, प्रशेतिवाद की एकांग्रिता--८३४, प्रकाशचंद्र ग्रप्त--8३४, ভাঁচ
रामबिलास झर्मा-प्र३६, शिवदान्सिह चौहान--5३९, प्रयोग की कप्मीदी--८४०, प्रगति
और अचार--८४०, मन्धनाथ गुप्त--५४१, अयतिवाद की अनिवाय॑ंता--८४२, वैचक्तिक
स्वातंत्य--८५४३, अतीत का ज्ञान--८४३, प्रगतिवादी दृष्टि-८४४, सर दागेम राधव
“पढे ४, रामेश्वर दार्मा--६४६, महत्व और संभावनाएँ--८४४७,
व्यक्तिवादी समीक्षा की प्रकृत्ति--८४४८, स्वरहूप-फ४८, प्रारंभ-८४९, सच्चिदानंद
हीरानंद वात्त्यायन “अक्षेय--८४९, अनुभूति की ध्यापकता--५५०, साहित्य में
प्रयीगात्यमकता--5१०, नीति नत्व--६५७, प्रयोग की कसौटी--८५२, गिरिजाकुमार
माथुर--८५२, डॉ घमंबीर भारती-८५४, लक्ष्मीकांत वर्मा-८५५, महत्व तथा
संम्भावनाएं--८५६ ।
मनोविद्लेषणत्मक समीक्षा की प्रवृत्ति--प५७, स्वरूप--४५७, आरंभ--४६५८,
जैनेस्द्र कुमार--८५०, वैयक्तिकता का आग्रह--०५९, सर्वोदिय--६१५९, पंचशील---४६०,
व्यक्ति का उन्नयन--८६०, रखयात्मक जीवत वृष्टि--5६ १, इलाचंद्र जोशी--४६ ६, युग
भावता और आडम्बर की अक्ृति--४६२, छायावाद की उपलब्द्धि--५६३, साहित्य और
बैयक्तिक कुंदा--८६४, मनोविज्ञान की ऐकांतिकता--६६४, मनोविशष्लेषणवादन--८६४,
महत्व तथा संभावानाएँ->८६६६ 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...