काव्य यथार्थ और प्रगति | Kavya Yatharth Aur Pragati

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kavya Yatharth Aur Pragati by रांगेय राघव - Rangaiya Raghav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रांगेय राघव - Rangaiya Raghav

Add Infomation AboutRangaiya Raghav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
== 26 = इसके रहस्यों का उद्घाटन हुआ है, और होता जा रहा है । हम यह निस्सं- देह कह सकते हैं कि प्राचीन काल में मनुष्य सृष्टि की जिन वस्तुओं को देख कर अपने ठऊ्क से व्याख्या करता था, उनही वस्तुओं की विज्ञान ने ठीक व्याख्या की है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि विज्ञान सृष्टि के समस्त रहस्यों की खोज कर चुका है | । वह धीरे-धीरे करता जा रहा है और निरंतर करता जा रहा है। यदि हम कहें कि विज्ञान के अतिरिक्त भी मनुष्य सृष्टि के रहस्य को जान लेता है तो हमारे सामने भारतीय चिन्तन के दो पहलू आते हैं । एक | हमारे ऋषियों ने जो सृष्टि के तत्त्व सुलभाये हैं वे सारे रहस्यों को सुलभा चुके हैं । किंतु हम स्पष्ट कह सकते ह कि भारतीय चिंतन में अनेक मतवाद मिलते हैं, अन्य संप्रदाय मिलते हैं | उनकी एक ही बात नहीं मिलती। अतः हम यह निष्कर्ष निकालते हैँ कि जो परिवत्त न संसार में विज्ञान की उन्नति ने प्रस्तुत किया है, वह वे दर्शन कभी नहीं कर सके । अतः वे रहस्य को नहीं जान सके | दो ! भारतीय तन्त्र विद्या और योग विद्या बहुत विचित्र है और योगी वह काम कर दिखाते हैं जो ओर लोग नहीं केर सकते । मैने स्वयं एेसे चम- त्कार देखे हैं जैसे निराधार व्यक्ति का धरती की आकर्षण शक्ति को चुनौती देते हुए ऊपर हवा में टंग जाना, आग के अखाड़े पर नंगे पाँवों चलना, ज़हर-कातिल ज़हर को खाकर पचा जाना, सीने पर से सड़क कूटने का इंजिन फिरवा देना और स्वस्थ ही उठ जाना । बर्फानी इलाके मे नगे बदन बेठना, और ऐसे अलोकिक से चमत्कार इसी प्रकार की कोटि में आते हैं। किन्तु इस प्रकार की विद्या के पुरातन होने पर भी, इसका विज्ञान की भाँति न तो साधा- रणीकरण ही हुआ, न सामाजिक जीवन में इसके द्वारा विज्ञान जैसा कोई परि- वत्त न ही हुआ । अतः हम कह सकते हैं कि योग विद्या से भी सामूहिक रूप से सृष्टि के रहस्य का ज्ञान नहीं हुआ | यदि यह मान लिया जाये कि व्यक्ति की अनुभूति में ऐसा हो जाता है, तो हम उस पर कुछ कह भी नहीं सकते | योग में मानसिक शक्तियों की उन्नति होती है| उपचेतन मस्तिष्क को काबू में किया जाता है। मैस्मरिज़्म उसी का रूप है। यह केवल यही प्रगठ करता है




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now