हिन्दी काव्य पर आंग्ल प्रभाव | Hindi Kavya Aur Aangal Prabhav

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Hindi Kavya Aur Aangal Prabhav  by रवीन्द्र सहाय वर्मा - Ravindra Sahay Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७) (क) राजनीतिक परिस्थिति;-सन्‌ १६४० से १८४० तक का कालु सात धत नय নন পট না আনা थ में मुग़ल साम्राज्य के श्रधःपतन श्रोर उसके प्‌र्णतया विनाश क है। शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुका था | जहाँगीर की छोड़ी हुई मुगल साम्राज्य की सीमाश्रों को शाहजहाँ नें: दछ्षिण में अ्रहमदनगर, गोलकुण्डा श्रौर बीजापुर के राज्यों तथा उत्तर-पश्चिम म कन्धार का दुगं जीत कर श्रौर मी श्रधिक विस्तृत कर लिया था | पर शाह- जहो के शासन के पश्चात्‌ मुगल साम्राज्य की विघटनकारी शक्तियाँ कार्य करते लगीं । श्रौरंगजेब की कट्टर धार्मिक नीति ने जनता में भय और श्रसन्तोष की. भावना भर दी । यद्यपि ऊपर से औरंगजेब के शासन काल में मुगल साम्राज्य सुरक्षित बना रहा पर उसके अन्तर में विनाश के बीज क्रमशः पनपने आरम्भ हो! गये थे। श्रौरंगजेब को इस परिस्थिति को सम्हालने में पर्यास संघर्ष करना पड़ा था । अपने ४० वे के राज्य के पूर्वाद्ध में उसे अनेक धार्मिक विद्रोहों और उप- द्रवों को दमन करना पड़ा । औरंगजेब के राज्य को सबसे अ्रधिक धक्का दक्षिण” में मराठों के संघटन से लगा | प्रारम्भ में तो मराठे यत्र-तत्न उपद्रव कर लेते थे, . पर फिर वे शिवा जी के नेतृत्व में संघठित हो मुगलिया राज्य को खुले श्रामः चुनोती-सी देने लगे । पंजाब में गुरु तेशब॒हादुर के पुत्र और उत्तराधिकारी गुरु गौोविन्दसिहं ने श्रषने पिता की हत्या का बदला चुकाने के लिए समस्त.सिक्ख जाति को लालसाः नामक एक नये भाई चारे के सूत्र में बाँध दिया। उधर राजपूताना में भी श्रद्धंव्वोष की आण भड़कना प्रारम्भ हो गई थी । सन्‌ १६७८- में राजा जतवंतसिह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने मेवाड़ पर श्रपना अधिकार कर लिया, जिसके फलस्वरूप राठौर मुगलों के विदद्ध हो गये। वे दुर्गादास के: नेतृत्व में अपने को संगठित कर लगभग तीस वर्ष तक मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए लड़ते উর वर अर और उड़ हे जि मे पा की हिन्द-विरोधी नीति के कारण श्रवध, इलाहाबाद कर श्राप अ डर রী और बेब के जिलों मे बना आश्वय में डाल दिया | इत प्रकार सन्‌ १७०७ में जब औरंगजेब कौ मृत्यु हुई तो विशाल मुगल साम्राज्य का समस्त ढाँचा हिलना प्रारम्भ हो गया था और उसकी विधट्नकारी शक्तियाँ पूर्ण रूप से सक्रिय हो रही थीं। जागीरदार जो मुग्रल साम्राज्य की मेरुदर्ड थे, औरंगजेब के शासन काल में श्रारथिक रूप से बहुत निबंल हो गये- थे क्योंकि सम्राट अपने राज्य के बढ़े हुए व्यय को पूरा करने के लिए, उनसे मूल्यवान भेंट के रूप में अधिकाधिक घन लेने लगा था । इन जागीरदारों के पासः




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