जगतसेठ और बंगाल में अंगरेजी राज्य की नीव | Jagataseth Aur Bangal Men Angareji Rajya Ki Niv

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Jagataseth Aur Bangal Men Angareji Rajya Ki Niv  by श्री पारसनाथ सिंह - Shree Paarasnath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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होती।” पर अब न तो पायदार हुहूसत रहु गई थी, न तिजारत हो अपनी ज्षसल्ली हालत में बहुत दिनों तक रह सकती थी। अलीवर्दी खां के होते हुए भो जगत्‌सेठ फतहचन्द, जमाने का रंग-ढंग देख कर, कह चुके थे कि “इस समय तो जान पड़ता है कि कोई सरकार हूं ही नहीं। शासक-वर्ग को न तो ईश्वर का भय है, न सम्राट का | चाहे जसे हो, छोगों से रुपया ऐंठना ही उनका एकमात्र कर्तव्य हो रहा है ।* जब अराजकता भिठी और अंगरेजों का राज्य हो जाने पर शान्ति ओर व्यवस्था का फिर लंबा दोर गुजरा भी तो उसके फलस्वरूप हमारी आर्थिक उन्नति न हो सकी, कारण कि विदेशी सरकार और भी तत्परता से लोगों का खून चूसने लगी और हमारे व्यापारियों की भी परंपरागत बुद्धि या कार्य-कुशलूता इस देश के काम न आकर इंगलंण्ड के ही काम आने लगी। व्यापार या व्यापारियों के हुंडी-पुरजों में जो ताकत होती है वह, थोड़े में, पैदावार को ही' ताकत कही जा सकती है। वह पेदावार अब दिन दिन कमर होने लगी--अब गलण्ड बंगाल से मलमल न संगा कर अपने ही कारलानों में महीन से महीन सूत की कताई और कपड़े की बुनाई करने लूगा । औद्योगिक क्रान्ति से भी कहीं भयंकर राजनीतिक कान्ति हो जाने से हमारे कारीगर भूसों मरने रगे--हमारा वाणिज्य-व्यवसाय चोपट होने रूगा--हमारे बड़े-से-बड़े व्यापारी एक एक कर टाट उलटने लगे । जहां फतहचन्द बड़ी ही आसानी से एक करोड़ की दर्शनी हुंडी का भी भुगतान कर सकते थे वहां हरखचन्द से डेढ़ छाख से भी कम रुपये को हुंडी का भुगतान कई किस्तों में ही हो सका था। यह एक परिवार को ही नहीं, देशमात्र को साम्पत्तिक अवस्था में लाख से लीख' जैसे परिवर्तन की सूचना थी। ও গু इस पुस्तक में सारे विषय के इतिहास पर हिदी-भाषाभाषियों कौ आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर, प्रकाश डांलने की चेष्टा की गई है। जिन इतिहास-संथों या लेखों से इसके लिखने में सहायता छी गई है उनके नाम प्रायः यथास्थान दे दिये गये हं । जगत्सेठों के वृत्तान्त--विशेषतः ईस्ट इंडिया कंपनी ओर उनके बीच ठेन-देन--के सम्बन्ध मं स्व० जे° एच ० लिट्ल के अनुसंधान ने अंधे की लकड़ी का काम किया हैँ । पर इन ग्रंथों या लेखों में कई इस समय दष्प्राप्य ज




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