बालू की दीवार | Balu Ki Deewar

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Balu Ki Deewar by महेश चन्द्र - Mahesh Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १ ) अपराधी ঈ অজ उसके शरीर पर भुल रहे हैं, ओर वह फिर भी सुस्कराता हुआ उससे कह रहा है--आओ न राजकुमारी, मुझे विदा तो कर दो । अब तो इस ज्ीचन में भेंट नहीं हो सकेंगी।' बह उसकी ओर बढ़ी कि उसे किसी ने पकड़कर खींच किया । कहा--छिः, एक पागल कवि से प्रेस करने चल्ती हो ? अपनेपन को क्‍यों भूलती हो ? तुम राजकुमारी हो | तुम्हें वरण करने राजकुमार ही आ सकते हैं | तुम कया इस प्रकार अपने राजबंश को ज्लांछित करोगी ९? बह जाग उठों, फिर उठकर बेठ गई। गर्मी से जैसे उसका करठ तक सूख गया । यह सब क्या हो गया है मुझे ? कहीं में নামা ল হী জার? ঈলআাজ্সানন্ন উপ ९? उसते अपने से ही भ्रश्न किया | हृदय की धड़कन ध्यान से सुनी । कोई कह रहा था--हाँ, करती ता हूँ, किन्तु अज्ञात रूप से ^ वह उठकर खड़ी हो गई। “यह सब मन का रम है केवलः उसने कद्दा--में इस अकार प्रेम में फँसनेवाली नहीं हूँ । मैं उसे ठुकरा दूँगी। आनन्द को निश्चय ही फाँसी का दण्ड दिया जायगा । उसने राजाज्ञा का उल्लंघन तो किया है, साथ ही सुमे भी चिन्ता में डाल दिया है। यह सब क्या कम अपराध है ९? उसने बाँदी को पुकारा | ऊँधती हुईं वह आकर खड़ी हो गयी । राजकुमारी सोचती रही। उससे कया कहें ? ऐसी बात ही कया है ? फिर एकाएक मल्लाकर पूलछला--'क्यों आई है ९? जी, सरकार ने स्मरण किया था !? जा, मुझे कुछ नहीं कहना है। रात्त में भी सोने नहीं देती ९? बाँदी राजकुमारी के इस आकस्मिक परिषर्ततन को किञ्चित मात्र भी नहीं समझ सकी। आज प्रथम वार शीत मे जागकर 1




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