हमारे कवि - भाग 1 | Hamaare Kavi - Bhag 1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चनद भरमार ৬
विस समय विदेशियं के छाउ्मण नहीं होते थे उस समय राजपूत
अउनो-श्रानः राक्ति का परिचय एक दूमरे को देते रहते थे । यदि रासो
में पश्वताज के विवाह ओर युद्धा पर विश्वास किया जाय तो
समझना याहिए कि ज्ना सद् के विगाहं दही नदी सकता था।
उस समय की बारात জা কন सेना समकना चाहिए । हो सकता है
कि शआ्राज का बारात उसी प्रथा का यूचक श्रो।र स्थानापन्न हो । “जिसकी
लाटा उक्षकी भसः की गवाह कहावत को वदि दूसरे शब्दों में
कहना चाहें तो “जिसकी तज्ञवार उसकी राजकरुमारीः कहना होगा ।
देर धनधान्य स দুযা খা সহ অনবা নিচ্ত সং হান की
उपासक थी । सोमनाथ के मंदिर के शिवजिंग को जब महमूद गृज्नी
ने तोी;ना चाहा तब पुजारियों ने उसे बना रहने देने के लिए
असंख्य धनरारि का लोभ दिया था।
रन्हीं स्थितियों में इस देश की भाषा अपभ्रश से बदलकर
हिंदी का रूप धारण कर रही थी । उस सनय लेखनी खड्ड की
अनिवाय संगिनी हो उठी थी | चंद कवि इसी हल-चल में
उत्पन्न हुये ।
हिंदी की प्रारम्भिक रचनाश्रों का जन्म युद्ध की गोद में हुआ, युद्ध-
प्रिय जाति की यश गाथा गाने के लिये हुआ, युद्ध-भावना को जन्म देने
अं,र जगाने के लिये हुआ, ऐसे व्यक्तियों के द्वारा हुआ जों लेखनी
उठाना ही नहीं खड् खींचना भ, जानते थ । जो स्याही में कलम
डुबाना ही नहीं, छातो में माले मोंकना भी जानते थे। वे केवल
राजदरबार में हां श्रमननो वाणी की गज न छोड़ते थे,
रणभूमि में भी सैनिकों में उत्साह भरते थ | वह कान एक श्रोर विदेशी
लुटेरों ओर राज्य लोलुबों के भवंकर आतंक का आर दूतरों ओर
राजूतां की श्रापरस को कल्लह शरोर बिद्गेप की अग्नि में उनकी
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