वन्दे वाणी विनायकी | Vande Vaanii Vinaayaki
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
161
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नया देश : नया समाज : नया साहित्य
वह जो अपना पुराना देश था न, वह १५ अगस्त, १६४७, को ही
मर गया और उसकी चिता-भस्म पर एक नया देश बन रहा है बस
रहा है !
हाँ, वह पुराना देश मर गया--जो ग्रुलाम था; बूढ़ा था; सडा-गला
था ! सदियों के शोषण और दोहन ने जिसे रक्तहीन, मांसहीन, स्नायु-
हीन, प्राणहीन, स्पंदनहीन बना दिया था ! वह अ्रस्थिकंकाल मात्र था--
ठठरियों के ढेर को, उसके दुवृंह बोक को हम कब तक ढोते रहते ?
इसलिए अभी उस साल बड़े धृमधाम से, नाचते, गाते, बजाते हमने
उसे दफना दिया ! बूढ़े की अंतिम यात्रा में आनन्द-उत्सव न किया जाय,
यह भी कोई बात होती ! बड़ी शान से हमने उसे समाधिस्थ किया!
उसे समाधिस्थ किया, क्योंकि इस नये युग में, हमें एक नया देश
चाहिए--नया देश, जो युवा हो, सबल हो, स्वस्थ हो ! जिसके परों में
जंजीर न हो, जो स्वतंत्र रूप से विचरणा करे, आगे बढ़े, नये-नये अभियान
करे। कितनी उत्ताल तरंगें, कितने गगनभेदी शिखर उसके उन परों से
चुम्बित-महित होने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसकी छाती में दम-
खम हो, जिसकी भ्रुजाओ्ों में कस-बल हो, जिसकी आँखों में मम्मभेदिनी
ज्योति हो--जिसके मस्तकं मे कितने सुनहले स्वप्न प्राकुल-व्याकुल चक्कर
काट रहे हों! वह देश, नया देश ! नया देश- जिसमे एक नये समाज
के निर्माण की क्षमता हो, साहस हो, सूझ हो । जो आकाश के स्वगं को
इस पृथ्वी पर उतार सके ।
नया देश---नया समाज ! समाजहीन देश मिट्टी का ढेर है। हम
कोरी मिट्टी की पूजा नहीं करेंगे। क्यों करेंगे ? मिट्टी सोना तब बन
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