भारतीय काव्य शास्त्र के सिद्धांत | Bhaaratiiya Kaavya Shaastra Ke Siddaant

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Bhaaratiiya Kaavya Shaastra Ke Siddaant by राजकिशोर सिंह - Rajkishor Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्यायं १ कला एवं काव्य प्रश्न १--काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख करते हुए यह दतलादये कि आरम्भ में इस शास्त्र को किने नामों से अभिहित किया जाता था ? और सर्दाधिक लोकप्रिय नाम कौन-सा है ? भारतीय काव्यशास्त्र का इतिहास पुरातन है। साहित्य की आलोचना का प्रारम्भ साहित्य के उदय के साथ ही हो जाता है क्योंकि काव्य की अपनी कुछ मान्य- ताएँ होती हैं, कुछ आदर्श होते हैं और संस्कृति के अनुरूप काव्यालोचन के मानदण्डों का उदय होता है। यहों से काव्यशास्त्र के उदय की कहानी प्रारम्भ होती है। काव्यशास्त्र काव्य की श्रेष्ठता, काव्य के गुण-दोष और अन्यान्य तत्वों का समीक्षण करता है । काव्य आज के बौद्धिक युग की नितान्त अपरिहाये आवश्यकता हैं। काव्य आज के जीवन का अभिन्न अंग है वह हमें विभिन्न जीवन-मृल्यों का संकेत करता है। जीवन के लिए प्रेरणा रहती है, ऐसा प्रेरक काव्य लोक-मड्भल-विधायक है या नहीं; इसके परीक्षण के लिए काव्यशास्त्र का उदय होता है। काव्यशञास्त्र की आवश्यकता के विषय में विद्वानों में मतभेद है । कुछ विचारक काव्य को मानसिक उदगारों का अभिव्यक्तीकरण मानते हैं, अतः काव्य की उपादेयता और अनुपादेयता का प्रश्न ही नहीं उठता है | दूसरे विद्वानों का विचार है कि निरन्तर परिवतंनशील जीवन-मूल्यां ओर मान्यताओं के साथ काव्यालोचन के प्राचीन प्रतिमान त्याय नहीं कर सकते है, अतः काव्यशास्त्र की उपयोगिता प्रश्नचिह्वांकित है । “एक स्व॑मान्य एवं सववंस्थायी मानदण्ड की स्थापना का प्रष्न अव्यावहारिक एवं शरमपुणं है । कारण, प्रत्येक. युग के साहित्य को उस युग का अध्येता भौर सर्जक अपने दंग से लिखता-पठता है भौर उसका आकलन करता है 1 किन्तु यह्‌ विचार तकंसम्मत नहीं है | क्योंकि काव्य के बाह्य-तत्वों मे तो परिवतेन होता है किन्तु मानव- मन की मूल प्रवृत्तियों मेः विशेष अन्तर नहीं भाता है । सुख-दुःख, हष-शोक ओर क्रोधादि भावानुभूतियाँ एवं संवेदनाएं शाश्वत हैं। अतः उनके स्वरूप एवं परिवेश में न्तर हो सकता है, ` परिस्थितिर्या, स्थान एवं पात्र बदल सकते टँ किन्तु मूलभूत तत्व नही । | | | अतः काव्यशास्व की नितान्त आवश्यकता दहै। काव्य-संसार मे अराजकता उत्पन्न न. हो, वहाँ क्रमबद्धता बनी रही है । इन सभी समस्याओं का समाधान काव्य- शास्त्र प्रस्तुत करता दे ।




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