बीसल देव रास | Bisal Dev Ras
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
91
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० )
से भी इसमें विवाह, चढ़ाई, वियोग, राज्याभिषेक आदि प्रसंग इस कृति
को गरिमा प्रदान करते हैं | इसी विस्तार को देखकर सभी ने उसके काव्य-
रस के सम्बन्ध में इस प्रकार से विचार व्यक्त किये हैं--
ग्रन्थ में वीर और झूंगार रसों का मिश्रण है। यद्यपि प्रधानता
विरह शगार कीहै। बीसलदेव रास एक वीरगीत है, जिसमें वीर
कत्य का ही उल्लेख नही, वरन् जीवन की म्न्य घटनाओं का उल्लेख
भी पाया जाता है। वीर सदेव लड़ते ही नहीं रहते । उनके हृदय में भी
कोमल मानवी भावनाश्रों का अस्तित्व रहता है। इसी लिए बीसलदेव
रास प्रेम और श्चंगार प्रधान काव्य होने पर भी वीर रचनाओं में
रखा जाता है । इन विचारों से यह् निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि
वीर रस का पुट होने से बीसलदेव रास वीर काव्य के श्रन्तगंत रखा
जा सकता है, जैसा कि उपर्युक्त उद्धरण में स्पष्ट लिखा भी है और
सभी ने ऐसा किया भी है । यह बात रास परम्परा के नितान्त विरुद्ध पड़ता
है, जेसा कि पूर्व रासो परम्परा के सन्दर्भ में दिखाया गया है। इस
अव्यवस्था का कारण ग्रन्थ में प्रक्षेप और अवेज्ञानिक सम्पादन ही है।
डॉ० माताप्रसाद युप्त ने ग्रन्थ के मूलपात्र, मूलस्थान श्रौर मल
षटनाश्रों की रक्षा करते हए उपरयं्त सारी कथावस्तु को ग्रामूल
परिवर्तित कर दिया है। एेसा करने में प्रधानरूप से उनकी सम्पादन
विधि, जो प्रागे लिखी जायगी, ही कारण बनी है। आज के पाठालोचन
के सिद्धान्तो से भ्रपरिचित व्यक्ति इस परिवर्तन को देख कर यह् विर्वा
नहीं करेगा कि दो ग्रन्थों के इस प्रकार के दो रूप सम्भव हैं या किसी
अच्छा-खासा दिखने वाले प्रन्थ में इतनी काट-छाँट हो सकती हे। उन्होंने
विभिन्न प्रतियों में प्राप्त कुल ४७१ छन्दों में से केवल १२८ छन्द
प्रामाणित रूप्र में स्वीकार किये हैं। इनके श्रन्तत जिस कथावस्तु का
भुम्फन उन्होंने किया है उसका सार इस प्रकार है-- `
.. भोजराज की सभा बेठी थी; रानी ने राजा से निवेदन किया कि
जीवन-काल मेही कन्या ( राजमती ) का विवाह योग्य वर देखकर
कर देना चाहिए। अतः राजा ने ब्राह्मण और भाट के द्वारा अजमेर के
शासक बीसलदेव चहुवान के पास लग्न की सुपारी भेजी । विवाहोपरान्त
एक दिन बीसलदेव भ्रपनी नवविवहिता ख्ली के सम्पुख ग्वोक्ति
करता है कि उसके समांन दूसरा कोई राजा इस धरती पर नहीं है ।
इस पर राजमतो उड़ीसाधिपति को उनसे बड़ा बताती है, क्योंकि उसके
राज्य में हीरे की खान है। बीसलदेव उड़ीसा के राजा के वैभव को प्राप्त
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