जीवन - देवता की वाणी | Jivan Devata Ki Vani

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Jivan Devata Ki Vani by जगन्नाथ प्रसाद मिश्र - Jagnnath Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ ] कन्दन.ष्वनि ज्यो समुत्यित हो रहीं है, वहाँ एकमात्र आदश से ही इस वेदना से मानवता की मुक्ति हो सकती दे । किस प्रकार ९ पुरातन संस्कारों के आधार पर अवस्थित जी सभ्यता का ध्वंस करके, उसके भ्रस्तूप पर नूतन जगत्‌ की, नूतन सस्यता की सृष्ट करके । इसके लिए सबसे पहले हमें पुरातन संस्कारो एवे मिथ्या विश्वासों के विरुद्ध संग्राम करना होगा। घर्म के नाम पर, समाज के नाम पर, प्रचलित रीति-नीति एवं आचार-विचार के नाम पर जो कपट, जो भीरुवा, जो निष्ठुरता आज समाज के स्तर-स्तर मँ परिव्याप्त हो रही है; जिसके भुलावे में पड़कर आज कोटि-कोटि मनुष्य मोहरस्त होकर क्रोतदासवत्‌ जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उसके बाह्य आवरण को छिन्न-मिन्न करके उसका वास्तविक रूप व्यक्त कर देना होगा। लक्ष-लक्ष आलोकहीन, आशाहीन हृदयों मे नवजीवन का स्पन्दन जायत करना होगा | स्वाधीनता-लाभ का दुजेय सङ्कल्प महण करके मन की अद्म्य शक्ति को पुरातन का ध्वंस करते के कायं मे संलग्न करना होगा । यदी होगा जगत्‌ के नव-योवन कौ उन्मादना का स्वर सङ्गीत; यदी होगा उसके जीवन का ध्रुवतारा। क्योंकि उसका काम होगा 6 १97७ 6০ 98681311891 00 8008 8४0 ৪, 09চঘ 1090970105, নূন मानवता की खष्टि। किन्तु इस सृष्टि काय के लिए प्रचण्ड शक्ति का प्रयोजन है। वह प्रचण्ड शक्तिः जो ज्ञान एवं कम के बीच , समन्वय स्थापित करेगी, जो ज्ञान को कर्म-साधना से विच्छिन्न करके नहीं रखेगी, जो ज्ञान को कर्मसाधना का एकान्त साधन वनाकर उसके द्वारा जीवन को चरिताथं करेगी । किन्तु एक अर ' जो हमें ज्ञान एवं कमं मे समन्वय स्थापित करना होगा, वहो




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