आदर्श वाणी और उमास्वामी श्रावकाचार | Adarsh Vani Aur Umaswami Shravakachar

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Adarsh Vani Aur Umaswami Shravakachar by मुनिश्री वृषभसागरजी महाराज - Munishri Vrishhbhsagarji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ > 4 कमं निजरा का साधन श्रात्म-चतन ग्रनतकाल से जीव मिथ्या-कर्म से संसार में परिश्रमण फर रहा है। तब मिथ्या-कर्म को नष्ट करना चाहिए । तब, सम्यवत्व क्या है ”? इसका समग्र वर्णन कुन्दकुन्दाचार्यजी ने समयसार, प्रवचनसार, पचास्तिकाय, अप्टपाहुड ओर गो व्मट- साराटि ग्रथों मे किया है। लेकिन उसपर किसकी श्रद्धा है ? तव श्रपना श्रात्म-कत्याण करलेने वाला जाच श्रद्धा स मूख किससे होगा इसका अनुभव लेता है। ऐसे ही सगार मे भ्रनादि काल से जीव परिभ्रमण करता आया है, फिर हवे पया करना चाहिए ? द्थनमोहूनीय क्म को नष्ट करना चाहिए । दर्णनमोह- नीय कर्म ग्रात्म-चत्तन से नष्ट होता है । कर्मकरा निर्जरा आत्म-नितन से ही होतो है । दान-पूजा करने ने पृण्य प्राप्न होता है । तीर्थयात्रा करनेसे पुण्य त्राप्त होता है, हरएक घर्तं का उद्देग्य पुण्य प्राप्त करना है। 1त्‌ केवलमान हाने के लिए, ग्रनत कम की निजंरा के तिए आात्म-चितन #1 उपाय एय ट । यह -गन्म-चित्तन আীনীল ই মনি ভই দ্বতী ভা, 2 শে चार घलोमन्यम दोषटो जन्य, कम-ते-कम दस-पद्रह {१ + नवय ~ ~ ~ {~~ ~ ~~ = त य {मिनद मो त्सारे कहने से राख विनद् प्र, मन वचन कीजिये । ष्पा কজন ক सिदाय লই ই রানি এ + न मच चेतत के শিলা संम्परउत्त चंदा घानल हो ), सस्‍्गर का स ट के क ~क উপ ५ केन ৯ হাক कुः कि = सि 8; स्थन कर दस्ता, मरम तरुपा. मृत्टूु चला द) | ग्यम 7 शी > £ का ६.२ थे लिए'य दर्शन मोहनीय कमम 71 মত ল রা वु = ५ ক श्‌ ২৬ সক কল বা स भन = পে {3 + ८ পর লা [8 তাত सागर खूण লতি কাল ক্যা - ^~ লী টি ॥ 4৯ ~+ + ~ ^ ~ 24 = = ~ [१ ५ 4 ८ न्ट ५ & कह: कक न नः ~ क ५ अपक इक 1 $ ক + १९६५ +) १ 2 1 ই ক তি এ बन সত ক আতি पौ दे




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