आदर्श वाणी और उमास्वामी श्रावकाचार | Adarsh Vani Aur Umaswami Shravakachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनिश्री वृषभसागरजी महाराज - Munishri Vrishhbhsagarji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ > 4
कमं निजरा का साधन श्रात्म-चतन
ग्रनतकाल से जीव मिथ्या-कर्म से संसार में परिश्रमण
फर रहा है। तब मिथ्या-कर्म को नष्ट करना चाहिए । तब,
सम्यवत्व क्या है ”? इसका समग्र वर्णन कुन्दकुन्दाचार्यजी ने
समयसार, प्रवचनसार, पचास्तिकाय, अप्टपाहुड ओर गो व्मट-
साराटि ग्रथों मे किया है। लेकिन उसपर किसकी श्रद्धा है ?
तव श्रपना श्रात्म-कत्याण करलेने वाला जाच श्रद्धा स मूख
किससे होगा इसका अनुभव लेता है। ऐसे ही सगार मे
भ्रनादि काल से जीव परिभ्रमण करता आया है, फिर हवे
पया करना चाहिए ?
द्थनमोहूनीय क्म को नष्ट करना चाहिए । दर्णनमोह-
नीय कर्म ग्रात्म-चत्तन से नष्ट होता है । कर्मकरा निर्जरा
आत्म-नितन से ही होतो है । दान-पूजा करने ने पृण्य प्राप्न
होता है । तीर्थयात्रा करनेसे पुण्य त्राप्त होता है, हरएक घर्तं
का उद्देग्य पुण्य प्राप्त करना है। 1त् केवलमान हाने के
लिए, ग्रनत कम की निजंरा के तिए आात्म-चितन #1 उपाय
एय
ट । यह -गन्म-चित्तन আীনীল ই মনি ভই দ্বতী ভা,
2
শে
चार घलोमन्यम दोषटो जन्य, कम-ते-कम दस-पद्रह
{१ + नवय ~ ~ ~ {~~ ~ ~~ = त य
{मिनद मो त्सारे कहने से राख विनद् प्र, मन वचन कीजिये ।
ष्पा কজন ক सिदाय লই ই রানি এ + न
मच चेतत के শিলা संम्परउत्त चंदा घानल हो ), सस््गर का
स ट
के क ~क উপ ५ केन ৯ হাক कुः कि = सि 8;
स्थन कर दस्ता, मरम तरुपा. मृत्टूु चला द) | ग्यम
7 शी >
£
का ६.२
थे लिए'य दर्शन मोहनीय कमम
71 মত ল
রা
वु = ५ ক श् ২৬ সক কল বা स भन = পে {3 + ८ পর লা
[8 তাত सागर खूण লতি কাল ক্যা - ^~ লী
টি ॥ 4৯
~+ + ~ ^ ~ 24 = = ~
[१ ५ 4 ८ न्ट ५ & कह: कक न नः ~ क ५ अपक इक
1 $ ক + १९६५ +) १ 2 1
ই ক তি এ बन সত ক আতি पौ
दे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...