तीन साथी | Teen Sathi

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Teen Sathi by धन्यकुमार जैन - Dhanykumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीन साथी : रविवार १५ “बस, चुप । . मैं कुछ नहीं जानती, में सिर्फ इतना ही जानती हुँ कि अद्ठुत हो तुम, भद्दुत हो, सृध्किर्ताका अट्टहास्य हो तुम !” अमीकने कहा, “मुझे तुम मुँह खोलके बताओगी नहीं, पर में निश्चित समझ रहा हूँ कि शीलाके सम्बन्धमें तुम मेरी साइकॉलॉजी जानना चाहती हो। उसका मुझे घोरतर अभ्यास हो गया है,- कम उमरमे जैसे सिगरेटका अभ्यास हुआ था । चक्कर आता था, फिर भी छोड़ता नहीं था। मुँहमें कडुई लगती थी, किन्तु मनमे होता था गर्व । वह जानती है कि किस तरह दिनपर दिन नगेफी मौताद वढ्ाई जाती है। चियोके प्रेमे जो भदिरा है वही मेरे. लिए इन्सपिरेद्ान (प्रेरणा) है । में कठाकार हय । ओर वह ठहरी मेरी पालकी हवा । उसके बिना मेरी तूलिका अटक जायगी वाढूके ठापूमें । मैं समझ जाता हूँ कि मेरे पास बेठनेसे शीछाके ह॒त्पिण्डमे एक तरह॒की लाल रंगकी आग घघकती रहती है, डेग्जर सिग्नठ, और उसका तेज प्रवेश करता है मेरी नस-नसमे । इसमे मेरा अपरौध न मान देना, तपलिनी | सोचती होगी उसमें मेरा विछास है,-नहीं जी नही, उसकी मुझे जरूरत है।” “इसीसे तुम्हें इतनी जरूरत ह्‌ क्राइस्लर-गाड़ीकी 1” “हाँ, मैं मानता हूँ इस बातको । शीलामें जब गवं जागता है तो उसकी भकं दृ जाती है! सिर्योको इसीलिए तो जुटाने पडते है इतने गहने- कपड़े। हमछोग चाहते हैं सियोंका माघुर्य और वे चाहती हैं पुरुषका ऐश्वये। उसीकी सुनहटी पूर्णतापर उनके प्रकाशका बैकग्राउण्ड है। प्रकृतिका यह पड़यन्त्र है पुरुषोंको बड़ा वनानेके लिए। सच है या नहीं, बताओ १ “हो सकता है सच। किन्तु तर्क इस बातका है कि ऐश्वर्य कहते किसे हैं। क्राइस्लरकी गाड़ीको जो छोग ऐश्वर्य कहती हैं, में तो कहुँगी कि वे पुरुषको छोटा वनानेकी तरफ खींचा करती हैं ।” अभीक उत्तेजित होकर बोल उठा, “मालूम हैं, मालूम है,-तुम जिसे ऐश्वर्य कहती हो उसीके सर्वोच्च शिखरपर तुम मुझे पहुँचा सकती थीं। तुम्हारे भगवान जो हमारे बीच भा खड़े हुए [” ~




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