पूर्ण सवतंत्रता की राह | Puran Swatantrata Ki Raah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शंतिचंद्र मेहता - Shantichandra Mehta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूर्ण स्वतत्नता की राह ও
और ढु ख की एक माया सी फैली हुई है। रुप के पश्चात्
डुख और दु स के पश्चात खुस--यह चक्र निरन्तर घूमता ही
रहता दै ।
खुख और दु स को अनुभव विशेषरूप से भनुप्य के हृदय-
निर्माण पर निर्भर करता है। छु स में मनुष्य यदि सही रूप से
सोचे तो विशेष शोन प्रांप्त कर लेतो है। कसी फथि ने कहा
भी हे--
दु स है ज्ञान की पान. मानव!
शान्त वुद्धि भोर दढ भावना कै भाधार पर दु ख से नई २
शिक्षाए मिलती है. और यहा तक ऊफि थे शिक्षाए इतती अमिट
रूप से अकित हो जाती है कि भावी जीवन के विकांस हित थे
घरदान रूप सिद्ध होती हँ । अधित खुस और दुस की
अलुभूतिया चित्त के विशिष्ट मनोभाषों के फारण ही होती है ।
एक गरीब यह सोच कर मन में दु सी होने लगा कि उसका
बच्चा मिठाई के लिये रो रद्या है, परन्तु उसके पास उतने पेसे
नहीं है। हलवाइयों फे यहा पच्रार्सों तरह फी स्वादिष्ट से
स्वादिष्ट मिठाइयाँ रसी है और पैसे घाले पूय गरोदतें हे एव
मजे उठाते है, किन्तु उसका बच्चा एक पेडे के स्थि भी तरस
रहा है। घद दु खी होता है भर एक पैसे फी गाजर सरद
फर यच्चे को सिलाना चाहता है। धद गाजर के छिलके उतार
कर फेंकता है, उसी समय एक मिप्मगी आकर ये छिल्की
अपने बच्चे को सिल्पने लगती है। उस समय उस गरीय की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...