धर्म्मदास जी की शब्दावली | DharmmaDas Ji Ki Shabdawali

DharmmaDas Ji Ki Shabdawali by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सतयुर महिमा दर दिये दरसन सन लुभाणो, सुन्ये बचन अमोल हो । ' ऋण छाया सघन घन की, करत हंस कलाल हो ॥ रे ॥ दया कीन्हों. दीन्दो, आपनी करि सेन हो । . अक्ति सुक्ति सनेही सजने, लिये परथम चीन्ह हो ॥ ३ ॥ भये कलमल दूर तन के, गई नसाय हो । अटल प्थ कबीर दीन्दा, घ्मदास लखाय हो ॥ ४ ॥ ॥ शब्द ऊ | सोरे पिया सिले सत ज्ञानी ॥ टेक ॥ ऐसन पिय हस कबहूं न देखा, देखत सुरत तुसानी ॥ १ ॥ एन रूप जब चीन्डा बिरह्टिन, तब पिस के सन सानी ॥ २ ॥ जब हंसा चले. सानसरोवर, सुक्ति भरे जहाँ पानी ॥ ३ ॥ कर्म जलाय के काजल कीन्दा, पढ़े प्रेस की बानी ॥ ४ ॥ घध्मदास कबीर पिय. पाये, मिट गइ आवाजानी ॥ ५. ॥ ॥ शब्ड ८१ गुरु पद अदे सबन से सारी ॥ टेक ॥ चारो बेद तुले नहि गुरु पद, ब्रह्मा बिष्तु और ब्रह्मचारी ॥ १ ॥ नारद मुनि सये गुरुपद सजि के, जपत सेस संकर की नारी ॥ २ । खुर नर सुनि भये शुरुपद भजि के, जपत राम अझरु जनक दुलारी॥ ३ ध्मेदास में गुरुपद सजिहेँ, साहेब कबीर समरथ बलिहारी ॥४ ॥ शब्द ९ (1! दस. उबारन.. सतयुरु, जब... में श्राइया । प्रगट भये. कासी में, दास कद्दाइया ॥ १ । बास्दन आओ. सन्यासी, तो. हँसी. कीन्दिया । कासी से. मगहर आये, कोई नहिं चीन्हिया ॥ रू |




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