पथ के दावेदार | Path Ke Davedar

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Path Ke Davedar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पथ के दावेदार १६ विउड्रा-मुड़की का फलाहार बना रहा था। वह जान भी न पाया कि कब उसका मालिक लद्ध० उठाकर दबे पौद सोढ़ी से ऊपर चढ़ यया $ दुर्मजिजे पर साहब का दरवाजा बन्द था । उस बन्द दरवाजे पर वह बार-बार धवड़ा देने लगा [ कुछ क्षण बाद एक भयभीत नारी-कष्ठ से अंग्रेजी में जवाद आया, “ड्रौन 1” अपूर्व ने कहा, “मैं नीचे रहने वाजा हूँ । उस गोरे को एक बार देखना चाहता हूँ 1” भयो? उत द्ववना चाहता हू, उमे भरी तितनी हानि की है 1 उका भाग्य अच्छा था, छो मैं उस समय था रही 1४ “वे सो गये हैं । अवं ने अत्यन्त भोर स्वर से कहा, “उठा दीजिए। यह सोने गा समय मही है। रात को सोवें। मैं तंग करने नहीं आरऊँगा। लेडिन अभी उसके मुंह का उत्तर बिना सुने मैं यहां से एक कदम भी नही हिंजूँगा। इसता दद्धर इच्छारहित पर बह अपने हाथ को खाटो को सीढ़ी पर भारबर आवाज बर बंदा पर मे हो दरवाजा ही खुला और न कोई उत्तर ही आपा। दो-एक मिनट और ठट्टरकर अपूर्द फिर विल्लाया, “मैं सभी नहो जा सवता-- उगसे बाहर आने के लिए बहिए1” बहू दरवाजे के बहुत ही पास आकर नप्न और अत्यन्त मृदु कष्ठ से बोती, मैं उनती लड़को हूँ। पिताजी को ओर से आपसे क्षमा माँगठ़ों हूँ। उन्होंने जो डुछ किया है, अपने होग-हवास से नहीं रिया। पर आप विश्वास शछिये, आपरी जितनो हानि हुई है, कस हम लोग उसकी दूति कर देंगे 0? सड़रो के कोमत स्वर से अपूर्व नरम पड दया लेकिन उसका एुस्‍्सा कम मे हुआ । शोला, “उन्होंने जयली के समान मे रा काफी नुक्सान विया है। हैं परदेशी अपाय हूँ, मगर आशा करता हूँ कि दल खबरे गे स्शय मुझसे मिलपर इसरा पैससा करने दो शोशिश करेंगे




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