आर्योदय | Aaryodaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হই घमेका अधिकार १ ये घ्य है, जिनके दयो यह ग्रेमाओ कभो टशडी नहीं पती । घे निधन होते हुए भी देशभक्तिके महाघनके धनी होते हैं। थे अन्दरसे निद्ाण रदते हैं, चाहे लोग उन्हें कितना हो “ইছালে হাঁ न समभते हों । ६. परन्तु श्रार्यधर्म किसीको यदह शिक्षा नहीं देता कि यह इसे अ्रपनाते दी अपनोंको छोड़ दे । थद तो इस खातमे अपनेफो छतकूत्य समझता हैं कि सय ज्ञातियां मौलिक सश्याइयोंकों समझकर ध्यपनी परिस्थितिक अजुखार उनपर आचरण करें शोर फल पार्वे। इन सच्चाईयोंका श्मारमा तथा घुद्धिफे साथ खम्यन्थ है । इनपर तत आर बायुका फोर भ्रमाव नहीं । प्रात्माकी ज्योति स्न्न प्रण्यलित द्ोरदी दे | चुद्धिका विकास सर्वत्र सम्भव है । पिचारके संघर्ष तथा अतुभवकी शरकाय्य युक्तिफे सम्यन्ध होतेही भाषों फो सम्रताका आदश तक पहुंचना आसान द्ोजाता है । अतः पोशाक श्रौर भोजन, मकानों और दुफानोंमे हम कमी देष नहीं ইন | অহ दोलकता है कि विद्यार परिवर्तनसते इन बातोंपर भी प्रभाव पड़े और इनमें भी अन्तर चदा ष, परन्तु प्रथम हमारा लक्ष्य धामिक बिचारोंका संघर्ष है | श्मारिमिक जीवनक खंखभे द्योते ही दूसरे चेतनपर ऋष प्रभाव पद जाता है। अतः इस कफथनमे कि मारतीय-घम्मं केवल भारतके लिये ही है, कोई सार प्रतीत नहीं होता । ७. पुराने भारतवासियोंने अपने सिद्धान्तोंकों अपने तकदी खीमावद्ध नहीं क्रिया था। आये तथा चौद्ध प्रचारक-- द्ोंने आहुसे सहस्नों पर्ष पर्दे अपनो उदारता, कुशाप्र-




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