प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास भाग 1 | Prachin Bharat Varsh Ki Sabyata Ka Itihas Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १ जिस ढग पर यह ग्रन्थ लिया गया है घह्द चहुत्त ही सर दे. इसमें मेरा सुस्य अभिघाय समसाधारण के सामने भारतंवर् का पक उपयोगी और छोटा पन्थ उपस्थित करने का रहा है, भारतवर्ष के पुरातत्व के विवाद का चुहदू अन्थ बनाने का नहीं । एस ग्रन्थ का रुपए्ता और अविस्तार के साथ झप्ययन करना कुछ सहज काम नहीं हैं । इस अन्थ के प्रत्येक भध्याय में जिन का यएंन है उनके सम्बन्ध में चहुत सी छान वीन हुई है और सिक्न मिन्न सम्मनियां लिग्वीन्गई हैं । मुझे सन्तोप होता यादि में पाठकों के लिये चादधिचाद का इतिहास, पुरातत्व के सम्वन्ध में जो चातें जानी गई दे, उनमें से प्रत्येक का बत्तान्त और म्त्पफ सम्मति के पतन भौर चिपश्त की बातों को लिख सकता । परन्तु ऐसा फरस में इस ग्रन्थ का साकार तियुना था चोणुना चढ़ जाता आर जिस अभिषाय से यद्द अन्थ लिस्ता जाता है उसकी पूर्नि न होती । अपने प्रथम उद्देयय की पूर्ति सरने के स्ये सें ने अनावदयक यादाचिचाद को वाया हैं और समय की हिन्दू सक्यता थौर हिन्दू जीवन की प्रत्येक अवस्था का जिनना सुपट्र गौर अधिस्तुृत घन मुझसे दो सका है, टिया है 1 परन्तु यद्यपि इस झम्थ में मेरा मुस्य उदय सविस्तृत वर्णन देने दाका हद तथाप मन यह उद्योग कथा दे कि इस पुस्तक पा समाप्त फर लग के उपरान्त भा पाठका के छदय पर उसका स्पष्ट प्रभाव चना रद । इस देतु मन चिस्तून बर्णनों फो जद्दां तक दो सका बच्चाया हु झौर घस्यक बाल के सुस्य सुर्य थिपयों को स्प रूप गौर पूरी तरद से चणन करने का उध्याग किया है। उन मुख्य मुस्य घटनागों को-मर्थात्‌ दिन्दू सभ्यता की कथा की प्रधान बातों फो-धपनि पाठकों के ृदय पर अद्धित करने के लिये जद्दां कद्दीं पुनरक्ति की आयदयकतता पढ़ी है चद्दां मैंने पुनरक्ति को चचाया नहीं दू। सरूडात प्रन्यों के ब्घुयादों से जो चहुत से चाफ्य मत उयस फिप हु चे पढ़िघ पहिल मरे सचिस्तून यणन के सिद्धान्त के चिस्द्ध जान पढ़ेंगे। परन्तु इन उद्धृत बाफ्यों का दना बहुत ही उचित था गदर




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