श्री जैन दिवाकर दिव्य ज्योति | Divakar-divya-jyoti Part-x
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उपाध्याय श्री मधुकर मुनि - Upadhyay Shri Madhukar Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन्त-समागम -. [ ११
इसी देश मे उत्पन्न हुए हैं । उन्होने श्रघ्यात्मन्ञानं का प्रसार किया
है। अनार्य देशो मे से किसने इनके मुकाविले का एक भी महा-
पुरुष प्रदान किया है ? आये देशो का तो यह हाल है कि जो
श्रार्य 'देशीय वहां विद्याध्ययन के लिए या व्यापार आदि के लिए
जाते है, उनके भी सदाचार का ठिकाना नही रहता उनके लिए
मास मदिरा का सेवन साधारण बात हो जाती है। किसी का
भाग्य शौर संस्कार ही अच्छे हो तो भले बच जाय । वहा का
वातावरण ही ऐसा है । कहा हैं -- ह क, = ५
काजल का कोढठरीमे कसे हु सयानो जाय,
.___ काजल को एक रेख्र लागि है पै लागि है ॥
শি
সি
काजल की कोठरी में घुसने वाला कितना ही' चतुरभीर
सावधोन क्यो न हो, कितनी ही 'बचने की कोशिश करे, मगर
कही न कही एक रेखा लगे बिना नहीं रह सकती | इसी प्रकार
चहा के वातावरण श्रौर खानणन मे' मास-मदिरा श्रादि ঘুষি
पदार्थों से बचना कठिन है । ` তি
जानी पुरुषो का कथन है कि जिसने धर्मं श्रद्धा का परित्याग
कर दिया है श्लीर जिते ईश्वर के प्रति विश्वास नही है, उसकेी
सोहबत मत करो । एसे श्रना्यं कौ वात मत मानो। जो ईश्वर
और धर्म को नही मानता, स मझ लो कि उसको खोपड़ी मे भूसा
भर गया है । ऐसा आदमी संगति करने योग्य नही है । `
- अनन्त काल भटकी आत्मा फिर भो मुक्ति नही पाती है |
` ज्ञानी की आज्ञा को पाले, तब छिन मे कर्म खपाती है ॥
॥ १ ‰ * हे ति 1. न
User Reviews
No Reviews | Add Yours...