लिकधर्मी प्रदर्शनकारी कलाएं | Lokdharmi Pradarshankari Kalayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लोकसंगीत
साधारणत सवकी यह मान्यता है कि वह गीत लोकगीत है, जो जन-
साधारण द्वारा प्रयुक्त होता है श्रौर जन-साधारण की भावनाओ्रो को व्यक्त
करता है| पिछले कुछ वर्षों मे लोक शब्द ग्राम के श्रर्थ में भी रूढ हो गया हैं,
अत लोकगीत गाँवों मे गरायेजानेवाले गीतो की ओर हो सकेत करता है ।
ये दोनो ही तात्ययें अपूर्ण होते हुए भ्रामक मी ह । लोकगीत जन-साधारण
द्वारा भी प्रयुक्त होते हैं और जब-साधारण श्रधिकतर गवोमे ही है इसलिये
यह तात्पये सही होते हृए मी अपूर्य इसलिये है कि सभी जन-साधारर द्वारा
गायेजानेवाले गीत लोकगीतों की परिधि में नही श्राति । वैसे तो आज के
फिल्मीगीत, जितने जन-साधारण द्वारा प्रयुक्त होते हैं, उतने कोई भी नहीं,
फिर भी वे लोकगीतो की श्रेणी मे नही श्राते । गीतो की लोकरजकता, उनके
प्रमाव श्रौर प्रचारक्षेत्र की व्यापकता, तथा उनकी लोकग्राह्मता ही उन्हें
लोकगीर्तो का दर्जा नही दे देती 1 श्रन्य करई ऐसी कसौटियाँ भी हैं, जिन पर
उत्तरकर ही उन्हें लोकगीतो का दर्जा प्राप्त होता है ।
किसी भी कलाकृति का अपना रचयिता भ्रवदय होता है, जो उस कृति
के पीछे सूर्य के समान दैदीप्यमान रहता है। वही कृति श्रपने रचयिता से
चमक्कृत होती दहै श्रौर उसका रचयिता भी उसी कृति से चमत्कृत होता है 1
रचयिता के व्यक्तित्व की छाप उस कृति पर स्पष्ट श्रकिति रहती है, परन्तु
लोकगीतो मे उनका रचयित्ता चपा रहता है, करी भौ उसके व्यक्तित्व का
आभास नहीं मिलता | ऐसी श्रसख्य रचनाए् श्रनादिकाल से श्रनेक कठो से
उद्मासित होती रहती हैं, परन्तु उनमे से कुछ ही रचनाएँ प्रकाश मे श्राती हैं
श्रौर शेष पानी के बुद्बुदो की तरह विलीन हो जाती हैं । कुछ रचनाएँ अपने
विलक्षण गेय तत्त्वो के कार्ण समाज मे प्रचलिते रहती है, उन्हे लोग उनके
रचयिताओं के कठो से सुनते हैं, सराहते हैं श्रौर वे हृतियाँ रचयिता की घरो-
हर के रूप मे उसकी प्रतिभा को प्रकाशमान करने के लिए प्रकाशित भी होती
हैं, परन्तु यह आवश्यक नही कि वे लोकगीतो का दर्जा प्राप्त कर सकें । उनमे
साहित्यिक एवं कलात्मक गुण होते हुए भी वे अपने सीमित दायरे मे ही रहती
हैं। वे समाज की घरोहर नही वनती । सामाजिक धरोहर बनने के लिये जिन
गुणो की आवश्यकता होती है, वे गुण यदि श्राज मानव शक्ति के श्रन्दर होते
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