द्वन्द्व युद्ध | Dvandva Yuddh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र लायवस्की का नादयेज्दा फ्योदोरोब्ना को प्रेम न करना विशेष- कर इस बात से प्रकट द्वोता था कि जो कुछ भी वह कहती थी या करती थी चद्द ज्ञायवस्की को झूठी, या झूठ के ही बराबर प्रतीत होती थी और जो कुछ भी वह खियों और श्र स के खिलाफ पढ़ता था वद्द उसे अपने ऊपर नादयेज्दा फ्योदोरोब्ना पर और उसके पति पर पूरी तरह से लागु होता हुआ जान पड़ता-था । जब वद्द धर जौटा तो बह पोशाक पहने बाल बनाए हुए खिड़की के सामने बेठी, गम्भीर चेद्दरे से कॉफी पीती जा रदी थी और एक मोटी सी पत्रिका के पन्ने उल्नट रही थी । उसने सोचा कि कॉफी पीना इतना महत्वपूर्ण कार्य नहीं था छि उखे इतनी गम्भीर सुद्दा बनाने की जरूरत पढ़ती और यद्द॒ कि जेसे হানি ठंग से बाल वाँवने में वद अपना समय बर्बाद कर रही हो, जैसे कि वहाँ आकर्षित करने के लिए कोई भी न हो और न आकर्षक बनने की दी कोई जरूरत हो। और उस पत्रिक् में उसे कूटी बातों के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाई दिया । उसने सोचा कि उसने कपडे इस तरद पहने हैं छोर वाल इस तरह बांधे हैं जिससे कि वह ओर अधिक सुन्दर लगे और पढ़ इस लिए रही थी जिससे लोगबाग उसे चुद्धिमती सममं । “क्या मेरे लिए. आज नहाने के लिए. जाना ठीक रहेगा १? उसने पूछा । “क्यों ? मैं सोचता हूँ, तम्दारे जाने या न जाने से कोई भूचाल सो श्रा नहीं जायगा।?' ५ज्ञहीं, मैंने सिफ इसलिए पूछा फ्रि कद्दीं ढावढर परेशान न हो उठे 1”? “अच्छा, तो डाक्टर से पूछी, में डाक्टर तो हू नहीं ।? इस समय नादयेज्दा फ्योदोरोब्ना की जिस बात से लायवस्की नाराज हुआ वद उसकी खुली हुई सफेद गर्दन और पीछे लटकते हुए




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