स्वाध्याय - सुमन | Swadhyay-suman

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Swadhyay-suman by उम्मेद कुवर - Ummed Kuvarविजयमुनि - Vijaymuni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदिनाथ হবীল % १३ भावाथं--जंसे कमलिनी के पत्तो पर पडी हुई जल की बूंद भी उन पत्तो के प्रभाव से मोती के समान शोभा पाती है, उसी प्रकार मेरा यह साधारण स्तोत्र भी आपके प्रभाव से सज्जन पुरुषो के मम को अवश्य ही हरण करेगा । हिन्दी पद्य यो मान, की स्तुति जुरू तुझ अल्पधी ने, अग्वमार्थ तेरे प्रभावश नाथ । वहीं हरेगो। सत्‌-लोक के हृदय को जलबिन्दु भी, तो, मोती समान नलिनी-दल पे सुहाते ॥८॥ £ आस्ता तव॒ स्तवनमस्त-समस्त-दोष, त्वत्सकथापि जगता दुरितानि हन्ति। दूरे सहस्र-किरण कुरुते प्रभेव, पद्माकरेषु जलजानि विकास-भाडिज ॥।दं।। तव-- (हे भगवन) तुम्हारा अस्तसमस्तदोष-- समस्त दोषो से रहित (निर्दोष) स्तवन-- स्तवन दूरे-- दूर आस्तामू-- रहे त्वत्सकया अपि--- तुम्हारे नाम की कथा भी जगता-- जगज्जनो के दुरितानि-- पापो को 7 हन्ति-- नष्ट कर देती है । सहस्रकिरण -- सूयं दूरे (भास्ता)-- दूर हो रहे प्रभा--- (उसकी) प्रभा एवं -- ही




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