बलिदान | Balidan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হত থাপ
मैं तो ऐसा भागा कि फिर पीछे घूम के भी न देखा कि कोई
पीछा करता है या नहीं सगर जब लगभग आधी दूर के निकल आयो
हूँगा तो यकायक पीछे से “ठहरो ठहरो”? की आवाज आई और जवर
मैंने चिहुँक कर पीछे देखा तो सुरलीधर पर निगाह पडी जो लपकता
हुआ चला आ रहा था । मै ठहर गया |
मुरलीघर मेरी ही उम्र का एक नोजवान खुशमिजाज लडका था |
इसका घर मोदपुर में ही बल्कि----बावू के मकान के साथ ही में
था ओर मेरे विवाह के चाद से ही यह मेरा लंगोटिया यार बन गया था ।
मुरलीघर स्वभाव का अच्छा यद्यपि कुछ चल था, देखने में हंसमुख,
सुन्दर, बदन का सजबूत, और बातचीत में वहुत होशियार थ। | पढ़ा
लिखा तो विशेष कुछ न था पर इससे कोई हज भी न था क्योकि
चाप की बड़ी जमींदारी के काम से लड़कपन ही से लगे रहने के
कारण उसमें बहुत होशियार हो गवा था और खाने खर्चने की
किसी तरह की कमी न थी | इस बार जो मै मोदपुर में आया तो
अमी तक इससे देखा भाली नहीं हुई थी, यह पहिली मुलाकात थी।
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